Saturday, November 11, 2017

रसोई

रसोई से आती
खाने की खुशबू में
शामिल होती है
बहुत सी अनिच्छा से भरी
तैयारियां
चुनाव की दुविधाएं
पसन्द-नापसन्द के
ज्ञात-अज्ञात आग्रह

रसोई के बर्तन जानते है
मन:स्थिति का ठीक-ठीक चित्र
सिंक के किनारे रखा जूना
रोज़ पढ़ता है
स्त्री की भाग्य और हृदय रेखा की लड़ाई

रसोई की नमी जानती है
स्त्री के मन की तरलता का स्तर
रसोई के छोंक का धुआं
रोज़ छोड़ आता अशुभता को
आसमान की देहरी तक
जिसे देख जल उठते है
लोक ऋषियों के हवन कुंड

रसोई में खड़ी स्त्री
करती है यात्रा एक साथ कई कई लोक की
परकाया प्रवेश के लिए सिद्ध स्थान है रसोई
सम्भव है एक चुटकी हल्दी डालते वक्त स्त्री को
याद आ जाएं पिता
और प्याज़ छीलते वक्त याद आ जाए मां

चाय छानते वक्त याद आ जाए
कोई पुराना साथी
या फिर वो बड़बड़ाती रहे सब पर
और भूल जाने की करे कोशिश सबकुछ

रसोई को दूर देखना आसान है
जैसे मैं देख रहा हूँ
लेटा हुआ अपने बिस्तर पर
रसोई में खड़े होना
अंतरिक्ष यान में खड़े होने के बराबर है
जहां सबसे पहले
खोना होता है अपना गुरुत्वाकर्षण

रसोई से जो दुनिया दिखती है
वो घूमती नही है
वो थमी हुई है एक जगह मुद्दत से
इसलिए
स्त्री को नही होता है लेशमात्र भी दृष्टिदोष
वो ठीक ठीक देख पाती है
अपनी और अपनों की
दशा और दिशा एकसाथ।

©डॉ. अजित

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