Thursday, February 8, 2018

हँसना

जो हँसना भूल गए है
उन्हें होती है आपत्ति
हर उन्मुक्त हंसी से

जो पसन्द करते है
निस्तब्धता
उनके लिए हँसना है एक बाधा

हर काल में उन्मुक्त
हँसना माना गया
शिष्टाचार के विरुद्ध

मनुष्य क्या तो चुप था
या रो रहा था
दोनों से किसी ने नही पूछा कारण

मगर जो हँस रहा था उन्मुक्त
उसकी हँसी की, की गई
भांति-भांति की व्याख्याएं

हँसना अपराध नही मगर
अपराध से कम भी नही था
हँसने से हर उस शख्स को थी
एक गहरी आपत्ति

जो कहता था
अनुशासन मनुष्य को महान बनाता है

दरअसल
हर उन्मुक्त हँसी
मनुष्य की महानता में बाधा थी

इसलिए चुप्पी में
तलाशी गई सहमति
और हँसने में महाकाव्य के पात्र

मनुष्येतर लोगों के लिए
हँसना नही बना था
उनके लिए बना था
हँसने पर ऐतराज़ करना

इस बात पर भी
जोर से हँसा जा सकता है
मगर एकांत में।

©डॉ. अजित

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