Wednesday, October 3, 2018

इन दिनों


इन दिनों
उससे बातचीत बंद है मेरी
इसलिए
मैं कह सकता हूँ
मनुष्य का मनुष्य पर भरोसा ही
बचा सकता है प्रेम

इन दिनों
उसे देखे
अरसा बीत गया है
इसलिए मैं देख सकता हूँ
मौसम के अवांछित षडयंत्र
जिसे कहा गया प्रकृति
वो है प्रकृति की मुंहबोली बहन
प्रकृति को जो चंद लोग जानते है
उनमे से एक हूँ मैं

इन दिनों
मैं उदास नही हूँ
इसका अर्थ यह कतई नही कि
मेरे जीवन में दुःख हो गए है अनुपस्थित
मैंने दरअसल उसके बिना
दुखों पर बात करना कर दिया है बंद
सुख नही मंडराते मेरे इर्द-गिर्द
उन्हें दुःख की उपेक्षा का दुःख है

इन दिनों
मैंने सीख लिया
सम्बन्धो का एक  नया व्याकरण
जिसमें कोई पुनरुक्ति दोष नही है
इसलिए मैनें बदल दिए
प्रश्न चिंह और पूर्ण विराम आपस में

यह लिपि केवल तुम पढ़ सकती थी
जो इसे पढ़ने का कर रहे  है प्रयास
उनके पास सूत्र नही कयास है
वो स्मृतियों के है गुलाम
इसलिए वो कभी नही कर पाएंगे भेद
प्रेम और प्रेम पत्र में  

इन दिनों
मेरे पास सलाह की अधिकता है
इसलिए नही कर पाता हूँ
उचित-अनुचित में भेद

इन दिनों
जब तुम नही हो
मैं लिख रहा हूँ
आधा सच आधा झूठ
कुछ भी पूरा लिखने के लिए
तुम्हारा होना था बेहद जरूरी
ताकि तुम कह सको
‘ये ठीक नही किया तुमने’

© डॉ. अजित




No comments: