Wednesday, October 29, 2014

मौत कविता की

कविता इतनी धीमी मौत
मर रही थी मेरे अंदर
कि मुझ तक उसकी
बमुश्किल खबर पहूँचती
उसका मरना उसी दिन तय हो गया था
जब मैने विषयों की संविदा का
विज्ञापन प्रकाशित किया था
उधार और मौत का सीधा रिश्ता है
दोनों अचानक से आते और डराते है
अपने डर से बचने के लिए
मेरे पास कविता की छोटी ढाल थी
जिस पर वक्त के कुछ ऐसे तीव्र वार हुए कि
एक तीर उसके आरपार होता
मेरी आंख से आ धंसा हो
मै एक आँख से लम्बे अरसे तक
कविता लिखता रहा
दरअसल वो कविता भी नही थी
वो कविताओं की शक्ल में
मेरी व्यक्तिगत बतकही थी
जिसमें सबको रस आना लाजमी था
कविता की धीमी मौत पर
मैंने शोक गीत नही
प्रेम के नोट्स लिखें
जिन्हें पढ़
आधे लोग हंसते
आधे रोतें
कुछ चुप हो जाते
कुछ पड़ताल में लग जाते
कविता की चुपचाप मौत की खबर पर
मेरी छद्म लोकप्रियता हमेशा हावी रही
इसलिए
अपने अंदर कविता की धीमी मौत का
मुझे भी जब पता चला
जब प्रशंसा की शराब से
मेरे कान लाल थे
और आत्ममुग्धता की ढेरी पर बैठा
मै कविता लिखने की सोच रहा था
और बस सोचता ही रह गया।

© डॉ.अजीत