Thursday, October 8, 2015

भविष्यवाणी

तुम्हारा विस्मय समझता हूँ
तुम्हें अचरज है
मेरे तुम पर अटक जाने पर
पात्र अपात्र की धूरी को भूल
तुम्हारे केंद्र की परिक्रमा करने पर
तुम थोड़ी सशंकित भी हो
मगर एक बात है
जो तुम भूल रही हो
मैं अपनी ही कक्षा के चक्कर लगा रहा हूँ
उपग्रह की भाँति
एक दिन नष्ट हो जाऊँगा
टकरा कर किसी धूमकेतु से
इसलिए आश्वस्त रहो
मुझसे कोई खतरा नही है तुम्हें
अवशेष तक को
तुम्हारी भूमि न मिलेगी
इसकी प्रत्याभूति देता हूँ मैं
मेरी भूमिका फिलहाल
अंतर्मन को कुछ छूटे चित्र भेजनें भर की है
ताकि मन के मौसम की जीते जी
कुछ सटीक भविष्यवाणी की जा सके
जिसे कुछ लोग
मेरी कविता भी समझतें है।
© डॉ.अजित 

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