Friday, August 4, 2017

वियोग की कविताएँ

वियोग की कविताएँ
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ब्रेक अप की ध्वनि
थोड़ी चलताऊ किस्म की थी
इसलिए मैंने कहा इसे वियोग
ब्रेक संभवानाशून्य था
जबकि वियोग में थी
संजोग की थोड़ी संभावनाएं
भाषा के स्तर पर
लड़ता रहा मैं खुद से
एक सांत्वना भरी लड़ाई
बाद में जिसे समझा गया
मेरा डिफेन्स मैकेनिज्म.
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तुम्हारी अनुपस्थिति में
मेरी वाणी पर व्यंग्य आकर बैठ गया
मैं देखता था हर जगह मतलब
मैं सूंघता था हर जगह षड्यंत्र
तुम्हारे बिना
एक औसत मनुष्य भी नही रहा मैं
इसलिए तुम्हारा साथ
याद आता रहा लोगो को
एक आदर्श की तरह.
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इन दिनों अकेला
धरती पर लगाता हूँ कान
आसमान मेरे दूसरे के कान के जरिए
हो जाता है धरती के अंदर दाखिल
इस दौरान वो छोड़ जाता है
मेरे दिमाग में कुछ अफवाहें
मैं खड़ा हो जाता हूँ तुंरत
मैं आसमान को तब तक
वापसी का रास्ता नही दूंगा
जब तक वो
इनके गलत होने की
खुद नही करेगा
आकाशवाणी
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दूर कहीं एक पक्षी गा रहा है
विरह का कोई गीत
उसकी तान में एक उदासी है
मैं गुनगुना चाहता हूँ
ठीक ऐसा ही कोई गीत
मेरे पास उदासी तो  है
मगर कोई गीत नही है
इसलिए मैं देखता हूँ
हसंते हुए लोगो को
और हो जाता हूँ उदास
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तुम्हारे बाद
मेरा चीजो से तादात्म्य टूट गया है
स्मृतियाँ हो गई है आगे-पीछे
अभी किसी ने पूछा मुझसे
क्या ये रास्ता जाता है बस स्टैंड?
मैंने कहा
जरुर, मगर तभी यदि आप जा पाएं
उसके बाद उसने कोई सवाल नही किया
इस तरह अनायास ही
घोषित हुआ मैं
एक गलत रास्ता बताने वाला.
© डॉ. अजित