Monday, October 15, 2018

दिल की बेकली


शराब पीकर वो पूछता था
लोगो के फोन नम्बर
ताकि दिल की बेकली के साथ
किसी दिन कर सके वो बात

चाय पीकर वो पूछता
लोगो के घर के पते
ताकि लिख सके फुरसत में खत

पानी पीकर वो पूछता था
घर के राजी-खुशी का समाचार
ताकि जान सके सुख-दुःख के सूचकांक

न उसनें कभी किसी को फोन किया
न कभी किसी को कोई खत लिखा
नही था उसके पास दुखों का को ज्ञात समाधान
सुखों का था वो सबसे बोझिल श्रोता

उसके पूछने को लिया जाता था
इतने हल्के में कि
हंस पड़ता था फोन नम्बर बताने वाला
विषय बदल देता था घर का पता बताने वाला
सुख-दुःख से इतर दर्शन की बातें करने लगता था
घर की राजी-खुशी बताने वाला

जब उसने पूछना कर दिया बंद
तब लोग बताते थे खुद का फोन नम्बर
घर का पता
और दिखाते थे सुख-दुःख के सच्चे मानचित्र

चीजें उसके पास आती थी
तब लौटकर
जब वो खो चुकता था उनमें
अपना आकर्षण

इस तरह से मतलबी समझा गया उसे
और दुनियावी ढंग से बेकार
शायद तभी
अधूरी रह गई
कुछ बात
कुछ खत
और कुछ सलाहितें

इस तरह पूरा हुआ एक
आधा-अधूरा इन्सान.

© डॉ. अजित