Thursday, July 31, 2014

तमाशबीन

उस समय
हर बात शापित थी
अन्यथा लिए जाने के लिए
हर तर्क बौना था
मन की स्थापित अवधारणाओं के समक्ष
हर विमर्श एकतरफा था
अह्म को खुराक देने के लिए
यहाँ तक
प्रेम का भी एक बुद्धिवादी संस्करण था
नफरत में एक अघोषित उतार-चढ़ाव था
सम्बन्धों की अधिकाँश ऊर्जा
निष्कर्षो में व्यय हो रही थी
पूर्वाग्रह का आंगन था
शंका की दहलीज़ थी
सब कुछ इतना सतही था कि
सम्भावना वहां तेल की तरह बहती रहती
हर दो घंटे में रिश्तें अपना अक्षांश बदल देते
दोस्ती के भूगोल और
प्रेम के खगोल के मध्य तैर रहा था
एक आभासी रिश्ता
इसकी गति और कक्षा उपग्रह की भांति तय नही थी
बल्कि
धूमकेतु की तरह अनियंत्रित और अनियोजित थी
जो किसी भी पल नष्ट कर सकती है
एक साथ कई जिन्दगियां
इन सब जोखिम के बीच
वह साध रहा था जीवन को
बचा रहा था अपने अंदर का प्रेम
लड़ रहा था खुद के द्वंदो से
सींच रहा था संवेदना की धरती
रिश्तों का कम्पन्न उसके ध्यान में सहयोगी था
उसकी चैतन्यता का केंद्र था
एक ऐसा लापरवाह रिश्ता
जिसके लिए वो एक मानसिक कौतुहल से
अधिक न कुछ न था
उसने खुद को प्रयोग होने दिया सायास
ताकि वो जांच सके खुद की लोच
उसका आत्मघात बहुतो के लिए
लोकरंजना का विषय हो सकता है
मगर उसमे देखा जा सकता था
एक रूपांतरण से गुजरता मनुष्य
जो खुद का तमाशबीन खुद था।

© अजीत

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