मैं आऊँगा भोर सपने की तरह
मैं आऊँगा गोधूलि की थकन की तरह
मैं आऊँगा डाक के बैरंग खत की तरह
मैं आऊँगा अचानक मिले दुख की तरह
और ठहर जाऊंगा
मन के सबसे सुरक्षित कोने में
मेरी शक्ल सुख से मिलती है
मगर नजदीक आने पर बदल जाती है
यह शक्ल
मैं आऊँगा बिन बुलाए भी एकदिन
और तुम्हें हैरानी नहीं होगी
मैं इतना ही खुला हूँ
जितना बंद हूँ
तुम जिस दिन पढ़ना शुरू करोगी
मैं हो जाऊंगा याद किसी लोकगीत की तरह
जिसे तुम गुनगुनाया करोगी
उदासी और एकांत में
मैं पूरा याद नहीं रहूँगा
इसलिए मैंने आना हमेशा रहेगा
आधा-अधूरा
जिसे सोच तुम मुस्कुरा सकोगी
अकारण भी।
©डॉ. अजित
2 comments:
सुन्दर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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