मुझे कई दोस्तों ने कहा फोन पर
बड़ी लम्बी उम्र है आपकी
अभी आपका ही जिक्र चल रहा था
या बिल्कुल अभी फोन निकाला था जेब से
करने ही वाला था आपको कॉल
मैं इस कथन पर हँसता और कहता
ऐसा!
मेरे परिवार में पुरुष अल्पायु रहे सदा
पिता बमुश्किल पहुंच पाए पचपन तक
दादा चले गए मात्र अट्ठाईस की उम्र में
दादी को सौंपकर उनके हिस्से का अंधेरा
यदि मैं लम्बा जीया तो पढूंगा यह कविता सस्वर
उन दोस्तो के साथ किसी पहाड़ी गेस्ट हाउस पर
बनाऊंगा उनके लिए खुद खाना
पिलाऊंगा उन्हें अच्छी चाय या शराब
दूंगा उन्हें दिल से धन्यवाद
क्योंकि मेरा उत्तर जीवन
उन्हीं के भरोसे हुआ है पार
उस क्रूर कुचक्र से
जहाँ पुरुष अकेले चल देते हैं
मृत्यु की यात्रा पर एकदिन
स्त्री और बच्चों को सौंपकर
उनके हिस्से की जिम्मेदारी
असमय,अकारण और आकस्मिक।
©डॉ. अजित
4 comments:
सुन्दर
सुन्दर
बहुत सुन्दर
बहुत ही भाव से लिख दिया आपने अजित जी! बहुत दुखद है किसी परिवार के पुरुषों का अल्पायु ह होना! जब कोई पुरुष आधी- अधूरी गृहस्थी छोड़ कर जाता है तो उसके साथ घर के लोग भी आधे मर जाते हैं! और सद्भावना से भरे लोग जीवन में सौभाग्य से मिलते हैं! उनकी हमदर्दी को हमें एक आशीर्वाद की तरह लेना चाहिए! ईश्वर सबको उत्तम स्वास्थ्य और उत्तम जीवन दे यही कामना है🙏
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