Sunday, September 4, 2011

इन दिनों...

इन दिनों

मै बेबात नाराज़

हो जाता हूँ

मिलने हमेशा देर से

जाता हूँ

जीने के लिए

रोज़ाना एक नई कहानी बनाता हूँ

इन दिनों

बहुत पुराने दोस्तों से मन

भर गया है

कुछ दुश्मन शिद्दत से याद आ रहें है

वैसे एकदम खाली हूँ

लेकिन व्यस्त होने का

बढिया नाटक कर रहा हूँ

अप्रासंगिक होकर भी

अपने होने को जस्टीफाई करने

के तमाम तर्क गढ लिए है मैने

इन दिनों

ऐसा अक्सर होता है कि

फोन जानबूझ कर बंद कर देता हूँ

ताकि मिलने/पूछने पर

लोग फोन न मिलने की शिकायत कर सकें

और मै खिसिया कर महान बन सकूँ

इन दिनों

दिन मे सोना,रात मे खोना

और मन ही मन रोना

अच्छा लगने लगा है

इन दिनों

मुझे यह भी लगने लगा है कि

जल्दी ही सबसे मन ऊब रहा है

चाहे वो पुराने-नये दोस्त हों

या कोई शगल

ऐसा भी लगता है जैसे

रोज़ सफर पर हूँ

लेकिन जाना कहीं नही

ज़िन्दगी से आकर्षण बिछड

गया है

न ये अवसाद है

न तनाव

न अस्थाई होने की कुंठा

फिर कुछ तो है

जो इन दिनों

मुझे रोज़ ज़िन्दा करती है

और रोज़ मार देती है

वैसे इस तमाम उधेडबुन में

एक बात अच्छी है

इन दिनों

मै अपने साथ हूँ....!

डॉ.अजीत