Tuesday, September 28, 2021

प्रेमिका को याद करते हुए

 प्रेमिका को याद करते हुए

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प्रेमिका को याद करते हुए
याद आ जाते स्वत:
छूटे हुए बसंत

जानकार लोग कहते हैं
प्रेमिका कभी पूर्व नहीं होती
प्रेम नकार देता है व्याकरण के नियम
मगर
प्रेमिका को याद करते हुए
अक्सर याद आ जाता है
पूर्व से पूर्व का समय

जब किसी के होने भर से
हम दिन को मान लेते शुभ
और टाल देते थे
अपने जीवन की तमाम अशुभता

प्रेमिका को याद करते हुए
सबसे ज्यादा याद आती है
अपनी वे गलतियां
जो होती गयी अनायास

यादों के सहारे
बनता है एक पुल
मगर वो रास्तों को नहीं जोड़ता
उसे देखा जा सकता है
दो देशों के मध्य फैली सीमा रेखा की तरह

प्रेमिका को याद करते हुए
याद आती है वो नदी
जो दरअसल तैर कर करनी थी पार
मगर हम तलाशते रहें
एक मल्लाह जो ले जा सके उस पर

प्रेम की स्मृतियाँ उतनी धूमिल नहीं होती कभी
प्रेमिका के नाम के अक्षर को हम पहचान लेते हैं
सबसे खराब लिखावट में भी

प्रेम यही कौशल देकर जाता है हमें
जो आता है काम हर बुरे वक्त में.

© डॉ. अजित


Monday, September 13, 2021

अपमान

 अपमानों की स्मृतियों को

कागज के जहाज की तरह

फूंक मार उड़ाया मैंने कई बार

हालांकि ये जतन बहुत कारगर तो न था

अपमान की स्मृतियाँ लोटकर आती रही मुझ तक

हर बार

 

ऐसी स्मृतियों को नाव बना

चलाया मैंने बेमौसमी बारिश में कुछ बार

मगर उनकी सतह इस कदर खुरदरी थी

कि उसको डूबते देखना

एक नये किस्म का दुःख था मेरे लिए

 

कभी हँसी, तो कभी रंज,तो कभी मलाल की शक्ल में

मैं अपमान की स्मृतियों को खुद से दूर रखने का

प्रयास करता रहा अक्सर

 

मगर

अपमान की स्मृतियों को

मुझसे बना रहा एक खास किस्म का लगाव

 

वे आती रही हमेशा याद

कभी रात में तो कभी दोपहर में

 

ऐसा भी नहीं है कि

मुझे अक्सर अपमानित होना पड़ा हो

बल्कि मैं बहुधा रहा स्वीकृत

मगर बारहा मुझे अपमानित होना पड़ा अकारण

यह एक विडम्बना जरुर कही जा सकती है.

 

अपमान की स्मृतियों की एक ख़ास बात थी

वे मुझे याद आती थी

सबसे सुखद दिनों में

वे देती थी दस्तक

उन्मुक्त हँसी के ठीक बाद

अपमान की स्मृति तलाश लेती मुझे

जब मैं माफ करने को होता किसी को

 

हालांकि मैंने बावजूद इनके माफ करना बंद नहीं किया

और इस बात के लिए

अपमान की स्मृतियों ने कभी माफ नहीं किया मुझे.

 

उन्हें लगा कैसा ढीट आदमी है ये भी  

अपमान के लिए समय को देता है दोष

और व्यक्तियों को करता है माफ़.  

 

इस बात के लिए समय ने लड़ी मुझसे

अलग किस्म की लड़ाई

 

अपमान की स्मृतियों पर कविता लिखने का

कर रहा हूँ यह एक नया जतन

शायद मिल जाए इस बहाने

सब अपमानजनक स्मृतियों को मोक्ष.

 

©  डॉ. अजित