Sunday, February 24, 2019

ध्यान

उसने पूछा
कुछ शुभकामनाएं उधार मिलेंगी?
मैंने कहा
क्या करोगी उधार की शुभकामनाओं का?
उसने कहा
किसी को उधार देनी है
मैंने कहा
मैं किसी से उधार नही मांग सकता
वरना तुम्हें देता जरूर।
**
उसने कहा
तुम हँसते हुए अच्छे लगते हो
मगर अच्छे लगने के लिए
कभी हँसना मत
मैंने कहा
मुझे कम हँसना पसन्द है
उसने कहा
मुझे भी तुम थोड़े कम पसन्द हो।
**
चाय का कप थमाते
उसने कहा एक बार
पता है चाय किस चीज़ से
अच्छी बनती है?
मैंने कहा
शायद ध्यान से!
उसने हंसते हुए कहा
नही लापरवाही से।
**
मृत्यु पर शोक न हो
क्या ऐसा सम्भव है?
उसने पूछा एकदिन
मैंने कहा सम्भव है
बस उसके लिए
पहले मरना जरूरी है।

©डॉ. अजित

Friday, February 22, 2019

सलाह


स्त्री से मत कहना
अपने मन की कोई दुविधा,कोई अप्रिय बात
वो बाँध लेगी उसकी गाँठ
झोंक देगी अपनी सारी ताकत
उसे समाप्त करने में

वो  पूछेगी बार-बार उसके बारे में सवाल
और देगी खुद ही हर सवाल का
एक संभावित जवाब

किसी स्त्री से मत बताना
अपने जीवन के दुःख
जो रख देगी अपने सारे सुख गिरवी
और तुम्हें दुःखों से निकालनें की करेगी
भरसक कोशिश

किसी स्त्री से मत बताना
अपने डर के बारें में ठीक-ठीक कोई अनुमान
वो इसके बाद अपने डरों को भूलकर
तुम्हें बताएगी तुम्हारी ठीक-ठीक ताकत

अपने बारें में न्यूनतम बताना
किसी स्त्री को
बावजूद इसके वो जान लेगी तुम्हारे बारें में वो सब
जो खुद के बारें नही जानते तुम भी

स्त्री से मत पूछना
दुःख की मात्रा
और सुख का अनुपात

स्त्री से मिलते वक्त
छोड़ आना अपने पूर्वानुमान
बचना अपने पूर्वाग्रहों से

सोचना हर मुलाकात को आख़िरी

स्त्री को बदलने की कोशिश मत
और खुद भी मत बदलना

स्त्री नही करती पसंद
किसी बदलाव को बहुत जल्द

स्त्री से कहना अपना धैर्य
स्त्री से सुनना उसके अनुभव
बिना सलाह मशविरा दिए

स्त्री जब पूछे तुमसे क्या हुआ?
कहना सब ठीक है

वो समझ जाएगी खुद ब खुद
कितना ठीक है और कितना है खराब.

© डॉ. अजित  

Thursday, February 7, 2019

पूछना


जब किसी दोस्त को कहता हूँ
माँ को कहना प्रणाम  
तब आदर सबसे निर्मल रूप में होता है
मेरे अंदर

जब कहता हूँ बच्चों को प्यार देना
वैसे प्यार नही मिलता मेरे अंदर बाद में
जब पूछता हूँ पिता के स्वास्थ्य के बारे में
तो याद आ जाते है खुद के पिता
जिनसे सही वक्त पर नही पूछा
उनका असली मर्ज

जब पूछता हूँ बहन के यहाँ कब गए थे
तब मैं मिटाता हूँ खुद का अपराधबोध

दुनियावी बातों से उकताकर
मैं पूछ लेता हूँ बुआ-फूफा, चाची-ताई
रिश्तें-नातें की कुशल क्षेम
और अंत में पूछ लेता हूँ  
यहाँ तक पडौसी के कुत्ते के बारें में भी
क्या वो अब भी जा जाता है तुम्हारे द्वारे?

बस एक बात नही पूछ पाता
अपने भाई और दोस्त से कभी
क्या तुम्हें कुछ पैसों की जरूरत है?

जिस दिन पूछ पाऊँगा
ये बात अधिकार के साथ
उस दिन मनुष्यता के सबसे निकट
पहुँच जाऊंगा मैं

फ़िलहाल,
हाल-चाल,प्रणाम ये औपचारिक बातें भले  ही लगे
मगर ये सब साधन है
वो अधिकार अर्जित करने के

जिसके भरोसे मैं
पूछ सकूंगा वो हर बात
जिससे बचता आया हूँ आजतक.

© डॉ. अजित






Tuesday, February 5, 2019

मध्य मार्ग

मैं किसी का इतना प्रिय न हो सका
कि मेरे बिना उसे रहा न जाए
मैं किसी का इतना अप्रिय भी न हो सका
कि कोई मुझे देखते ही अपना दिन खराब समझ ले

मैं हमेशा एक युक्तियुक्त दूरी पर रहा
इसलिए मुझे लेकर है
सबके अपने-अपने अनुमान है

लोगों ने निज सुविधाओं से मुझे देखा
किसी के नजदीक तो किसी से दूर

अगर मैं किसी का इतना प्रिय होता कि
उसे मेरे बिना जीना लगता अपरिहार्य
तो मैं उससे करता बात
उसके जीवन की अप्रियताओं पर

जिन्हें मैं अप्रिय नही लगा
उन्हें प्रिय रहा हूँ ऐसा भी नही है
उनकी अप्रियताओं पर मुझे रहा सदा सन्देह

इसलिए मैं बता सकता हूँ
प्रेम का मध्यमार्ग
जानते हुए यह बात कि
नही होता प्रेम में कोई मध्य मार्ग।

© डॉ. अजित

Sunday, February 3, 2019

प्रिय काम


उसने कहा
तुम्हारी प्रशंसा करते-करते
अब ऊब गई हूँ मैं
क्या तुम कुछ दिन अपनी
कमियाँ सुनना पसंद करोगे?

मैंने कहा
हाँ ! मैं भी प्रशंसा से ऊब गया हूँ
कुछ दिन मेरी कमियों पर करो बात

उसने मुस्कुराते हुए कहा
तुम अपनी प्रशंसा से ऊब गए
फिलहाल इस खूबी पर अटक गई हूँ मैं
कमियों पर फिर किसी दिन होगी बात
**
तुमसे कुछ दिन दूर रहकर
यह जाना मैंने
मेरे पास जीवन के
हर संभावित उत्तर मौजूद है
मगर
मेरे पास जो सवाल है
वो वास्तव में सवाल हैं
इस बात का सही उत्तर है
केवल तुम्हारे पास.
**
ऐसा कई बार हुआ
मैं भूल गया उसकी पसंद की चीज
पूछने पर नही बता पाया
यहाँ तक एक गाने का नाम
मगर ऐसा कभी नही हुआ
जो उसे भूल गया हूँ
एक पल के लिए
पसंद को भूलना
और पसंदीदा को याद रखना
आज भी प्रिय काम है मेरा.
**
हम एक दूसरे को
कुछ-कुछ हिस्सों में पसंद थे
इसलिए प्रेम का दावा
कभी नही रहा किसी का
और जिन हिस्सों में पसंद थे एक दूसरे को
वहां किसी अन्य के दावे की नही थी
लेशमात्र भी गुंजाईश.
© डॉ. अजित