उसने
कहा
तुम्हारी
प्रशंसा करते-करते
अब
ऊब गई हूँ मैं
क्या
तुम कुछ दिन अपनी
कमियाँ
सुनना पसंद करोगे?
मैंने
कहा
हाँ
! मैं भी प्रशंसा से ऊब गया हूँ
कुछ
दिन मेरी कमियों पर करो बात
उसने
मुस्कुराते हुए कहा
तुम
अपनी प्रशंसा से ऊब गए
फिलहाल
इस खूबी पर अटक गई हूँ मैं
कमियों
पर फिर किसी दिन होगी बात
**
तुमसे
कुछ दिन दूर रहकर
यह
जाना मैंने
मेरे
पास जीवन के
हर
संभावित उत्तर मौजूद है
मगर
मेरे
पास जो सवाल है
वो
वास्तव में सवाल हैं
इस
बात का सही उत्तर है
केवल
तुम्हारे पास.
**
ऐसा
कई बार हुआ
मैं
भूल गया उसकी पसंद की चीज
पूछने
पर नही बता पाया
यहाँ
तक एक गाने का नाम
मगर
ऐसा कभी नही हुआ
जो
उसे भूल गया हूँ
एक
पल के लिए
पसंद
को भूलना
और
पसंदीदा को याद रखना
आज
भी प्रिय काम है मेरा.
**
हम
एक दूसरे को
कुछ-कुछ
हिस्सों में पसंद थे
इसलिए
प्रेम का दावा
कभी
नही रहा किसी का
और
जिन हिस्सों में पसंद थे एक दूसरे को
वहां
किसी अन्य के दावे की नही थी
लेशमात्र
भी गुंजाईश.
©
डॉ. अजित
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सुन्दर
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