Friday, August 26, 2011

शून्य

दोस्तों से शेयर

करने के लिए

उपलब्धि या दुख

का होना जरुरी है

लेकिन क्या

दोस्ती के व्याकरण

मे ऐसा भी कोई

नियम है कि

जब मन के उस

विराट शून्य को

जहाँ न कोई

उपलब्धि हो

न कोई दुख

बस एक निर्वात हो

और उसे बिना

कहे शेयर किया जा सके

जहाँ न किन्तु हो न परंतु

बस अबोला संवाद हो

सुख-दुख हार-जीत

अपेक्षा से परे एक ऐसा भाव

जिसमे ठहराव है जन्मजात

बैचेनी है

और शून्य मे विलीन होने

की एक मूकबधिर सी अभिलाषा

अफसोस!

ऐसे दोस्त संविदा पर नही मिलते

होते है किसी-किसी के पास

फिर वहाँ ऐसा शून्य

आधार बनता है किसी

नए आत्मीय संवाद का....!

डॉ.अजीत

Saturday, August 13, 2011

बात-बेबात

सवालों की ज़बान मे जवाबों की बातें करें

मिलने की आरज़ू मे खो जाने की बातें करें


मुडकर भी जिसने देखा न हो एक बार

हम फिर क्यों उसके जाने की बातें करें


जब कशिस खो गई गुलदानों की

फिर कैसे उनके सजाने की बातें करें


मौत तो मारेगी एक बार ये तय है

आज कुछ जीने के बहानों की बातें करें


हौसला उससे उधार मिल ही नही सकता

जो महफिल से बेबात जाने की बातें करें


माना कि वो बदनाम है बहुत महफिलों में

फिर भी सभी उसी को बुलानें की बातें करें


डॉ.अजीत

Thursday, August 4, 2011

एनसीआर

अपने कामयाब

दोस्तों से मिलने

के लिए एनसीआर

से बढिया जगह कुछ और

हो ही नही सकती

अपने वक्त के कुछ बेहद सफल समझे गए

दोस्तों से मिलने के लिए

एनसीआर में एक जगह

की तलाश जारी है

रिंग रोड की तरह

खुद पर घुमकर आ जाता हूँ

और पाता हूँ कि

अपने-पराये रिश्तों के समकोणों

के बीच का सफर

कितना जोखिम भरा हो सकता है

लेकिन मिलना भी जरुरी है

आग्रह है कि दिल्ली से जब भी

गुजरो कम से कम

एक मिस्स कॉल ही कर दिया करों

अपने करीबी दोस्तों को मिस्स

करते हुए ये ख्याल आता है

कि एनसीआर की हवा पानी में

ऐसा क्या है कि

जो आदमी को बदलने की जिद पर

उतर आती है

प्रेक्टिकल होने का रोज सबक सिखाती है

खामोशी खुद ब खुद गुनगुनाती है

तभी तो न जाने क्यूँ

अपने करीबी दोस्तों से

एनसीआर मे मिलनें

की ख्वाहिश

एक हफ्ता और खिसक जाती है....!

डॉ.अजीत