Sunday, April 30, 2023

नियति

 मुझसे मिलने के बाद भी

वह बनी रही नियतिवादी

मेरा मिलना भी 

उसे भाग्य पर पुनर्विचार के लिए 

अवसर न दे सका


कमोबेश मैं भी भीड़ के 

दूसरे लोगों जैसा ही निकला

कुछ नया घटित न हुआ 

मेरे मिलने के बाद भी 


वो कोसती रही ईश्वर और भाग्य को 

अलग-अलग ध्वनि और स्वर में 

जिसे बोध समझा गया बाद में


जबकि 

मैंने चाहा था हमेशा 

मैं बदल दूं उसकी खुद के बारे में बनी

सब जड़ मान्यताएं 


मैंने चाहा था कि

मैं घटित हो जाऊं उसके जीवन में

किसी आकस्मिक चमत्कार की तरह 

जिसके बाद वो हो सके 

ईश्वर के प्रति कृतज्ञ 


मुझसे मिलने के बाद 

उसके हिस्से हँसी आई थी

यह अच्छी बात जरूर कही जा सकती है


मेरे बाद 

वो किस तरह से मुझे रखेगी याद

नहीं जानता हूँ मैं


मगर जानता हूँ इतना 

मुझसे मिलने के बाद 

यदि बदल जाता उसका कुछ अंश जीवन 

कितना सुखद होता है सब  


उससे मिलने के बाद

मैं भी बना नियतिवादी

और देने लगा

ईश्वर को दोष 

कविता की शक्ल में।


©डॉ. अजित

Sunday, April 23, 2023

आँख

 

चित्र के अंदर से

एक आँख हमें देखती है

हम जो देखते हैं

वो उस देखने को नहीं देखती

वो केवल हमें देखती है

इस तरह बनते हैं

दो चित्र एक साथ

--

शिल्प की व्याख्याएँ हैं

कला की नहीं

कला का विश्लेषण संभव नहीं

इसलिए भी होती है

कला शाश्वत

--

संकल्प और विकल्प

दोनों प्रकाशित हो जाते हैं

इसलिए भी  

दोनों लेते हैं

एक दूसरे की जगह।

 --

आसमान की तरफ देखते हुए

अपनी देखने की सीमा का बोध नहीं होता

उसके लिए देखना होता ठीक सामने

शायद तभी

हम समंदर और पहाड़ को

एक साथ नहीं देख पाते।

--

अपने अंदर कूदकर

निकलने का रास्ता प्राय:

दिख जाता है

जो नहीं कूदते

वे रास्तों की नहीं मंजिलों की

बातें करते हैं अक्सर।

©डॉ. अजित

Wednesday, April 19, 2023

शिकायत

 

कवि के लिए कविता से अधिक मुश्किल था

किताब बेचना

इसलिए अप्रकाशित रह गयी

बहुत सी कविताएं


जिन प्रकाशकों को किताब बेचने के लिए

कवि की जरूरत नहीं थी

उन प्रकाशकों के दरवाजे बंद थे कवि के लिए

इसलिए भी कुछ कविताएं बंद रही

मन के दरवाजों में बंद सदा


यह कोई शिकायत करने की बात नहीं

यह एक परंपरा की बानगी भर थी


कवि को शिकायत नहीं करनी चाहिए

उसे लिखना चाहिए अपनी शर्तों

पढ़े जाने की कामना और छपने की ज़िम्मेदारी छोड़कर  


अप्रकाशित कवियों को तलाश लिया जाता है

उस दौर में जब होती हैं उनकी सबसे ज्यादा जरूरत


इसलिए कविता के लोकार्पण की चिंता मिथ्या है

लिखना ही अंतिम सत्य


यह कोई दार्शनिक उक्ति नहीं

एक अज्ञात हस्तक्षेप है

जिसके सहारे बचे हैं

दुनिया के सभी अज्ञात कवि

और उनकी कविता।

 

© डॉ. अजित

Sunday, April 9, 2023

नई बात

 लिखने के लिए

बहुत कुछ लिखा जा सकता है
मगर तुम्हारे बारे में लिखते हुए
अब कहने से अधिक बचाने का जी चाहता है

मैं कह सकता हूँ एक बात
कि अब मेरे पास कोई बात नहीं बची है

मेरे पास जो बचा है
वो इतना निजी है कि
उससे कोई बात नहीं बनाई जा सकती है

जीने और कहने के मध्य
मैं अटक गया हूँ एक खास बिन्दु पर

जहाँ से देखने के लिए
एक आँख का बंद करना है जरूरी

और फिलहाल
मैं इतना बड़ा जोखिम नहीं ले सकता

क्योंकि
तुम्हें धीरे-धीरे दूर और निकट आते-जाते देख
मैं हो गया हूँ दृष्टिभ्रम का शिकार

मैं बता सकता हूँ
एक नई बात
बशर्ते तुम्हें यह पुरानी लगे
मैं कर सकता हूँ पुराने दिनों को याद
बशर्ते तुम उन्हें बचकाना न कहो।

© डॉ. अजित