Saturday, August 4, 2012

खबर



खुद बेखबर हूँ मगर लोग खबर रखते है
मेरे करीबी लोग शीशे की नजर रखते है

उदासी देखकर उदास होने वाले दोस्त
न जाने क्यों बस उपरी नजर रखते है

कहाँ मै जाता हूँ कहाँ नही जाता और क्यों
महफिल के दरबान भी इसकी खबर रखते है

किसी को अपनाकर छोडना है मुश्किल
हम तो अपनी दीवार मे शज़र रखते है

मुमकिन है अब बीमार होकर मर जाना
चारागर अब दवा की शीशी मे जहर रखते है

तन्हाई मे सलूक निभाना है जरा मुश्किल
इस दौर के लोग कम ही सबर रखते है

डॉ.अजीत