Tuesday, May 7, 2013

नियति



कुछ दोस्तों को हम
घसीटते हुए शराबबाजी
की किस्सागोई तक ले आएं
अक्सर
शराबी दोस्तों
के सदन में उनका ही प्रश्नकाल
चलता है
जबकि हमारे ऐसे कामयाब दोस्त
ठीक उसी वक्त
बना रहे होते है योजनाएं
जा रहे होतें है मन्दिर सपरिवार
अपनी उपलब्धियों के आंतक से
मजबूर कर रहे होते है
असहमति के स्वरों को
बलात सहमति में बदलनें के लिए
मिलनें पर अजनबी लहज़े
में बतियाना अब अचरज़ की बात नही
हंसी आती है उन लोगो की सलाह पर
जो कहते है दूनिया गोल है
वक्त बदलेगा
अहसास कचोटेगा
कुछ खोने का
न वक्त कभी बदलता है
और न अहसास कचोटता है
दूनिया की दुकानदारी में माहिर दोस्तों
अब तुम्हारी कलाकारी को सलाम करता हूँ
स्वीकार करता हूँ
खुद का ‘झक्की’ होना
और अव्यवहारिक होना भी
न तुम बदलें
न हम
शायद यह उस अंत की शुरुवात है
जो नियति के हाथों बरसों पहले
लिख दी गई थी
हमारे माथे पर...।
डॉ.अजीत