Sunday, May 29, 2016

वो

उसकी सबसे अच्छी बात ये थी
प्रेम संवेदना और मौन समझ के बावजूद
नही मरने दी उसने अपनी मौलिकता
बचाए रखा अपना विचार हमेशा
नही मिलाई हमेशा मेरी हां में हां
उसके लिए मैं नही था सबसे सुपात्र व्यक्ति
ये अलग बात थी
वो किसी की तलाश में नही थी
वो आँख में आँख मिलाकर बता सकती थी
मेरे तमाम ऐब
जब वो स्पष्ट बोलती तो साफ नजर आता था
स्पष्ट और कड़वे बोलने का फर्क
उसने प्रेम और अधिकार के समक्ष
कभी गिरवी नही रखा अपना विवेक
उसके पास था असहमति का नैतिक बल
साथ ही
विचार और संवेदना का अद्भुत संतुलन
विमर्श को बना सकती थी वो कविता
और कविता में तलाश लेती थी वो विमर्श
उसके पास था कौशल
बिना व्यक्तिगत हुए भी लम्बी बहस करने का
वो उदासी के पलों में ऐसी कल्पना कहती
हंस पड़ता था मैं
निर्जीव वस्तुओं पर कमाल का था उसका व्यंग्यबोध
मानों जानती हो उनकी अंदरुनी दुनिया करीब से
वो जानती थी
अस्तित्व का मूल्य
प्रेम की जरूरत
और मनुष्य की कद्र
इसलिए
बेहद कम समय के लिए मिल पाए हम
वो इर्द गिर्द के लिए
विस्तार के लिए बनी थी
उसको जीया जा सकता था बस
समझ तो वो न तब आती थी
और न आती है अब।

©डॉ.अजित

Friday, May 27, 2016

बातें

चलो उन दिनों की  कुछ बातें करतें है
जब सीख रहें थे सम्बन्धों के
सबसे कोमल षड्यंत्र
जब देख रहे थे
धरती के नीचे बहती नदी का सागर से मिलन
जब बना रहे थे
बादल और चाँद के बीच एक ठिया
ताकि बरसात में पी जा सके साथ चाय
जब शिकायतों को भेजतें थे व्यंग्य की शक्ल में
और उड़ाते थे वायदे बनाकर

चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
जब याद रहता था हमें हमेशा
एक दूसरे का
जन्मदिन
पसंदीदा कपड़े
और पसंदीदा खाना
जब रास्तों को पता होता था हमारे स्लीपर का नम्बर
दरख़्त जानतें थे हमारी काया का व्यास
पक्षी आपदा और मौसम की घोषणा करते थे
देखकर हमें साथ-साथ

चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
जब मनुष्य का मनुष्य पर बचा हुआ था भरोसा
प्रेम था दुनिया का सबसे साहसी काम
विश्वास था जब परीक्षण से मुक्त
सन्देह था जब सबसे उपेक्षित
हमारा साथ था जब सूरज सा शाश्वस्त

चलों उन दिनों की कुछ बातें करतें है
जब हवा बहती थी हमारे पसीने के आग्रह पर
बादल आतें थे तुम्हारे चेहरे की शिकन देखकर
बारिश होती थी हमें अकेला देखकर
फूल मुरझा जातें थे तुम्हें उदास देखकर
तितलियाँ उड़ जाती थी हमारी निजता सोचकर

चलों उन दिनों की कुछ बातें करतें है
चौराहों के पास होते थे अफवाहों के खत
गलियों के पास होता था जल्दबाजी का मनीऑर्डर
रास्तें अपने अपनी प्रेमिका को दिखाते थे हमारी शक्ल
धूप जब आती थी डेढ़ घण्टा विलम्ब से
साँझ जब होती थी पौने दो घण्टें पहले
दिन और रात छोड़ना चाहते थे
कुछ घण्टे कुछ मिनट न जाने किसके भरोसे

चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
क्योंकि
जब केवल बातें बच जाती है
उन्हें दोहरा-दोहरा कर ही करना होता है खतम
बातों का बच जाना
मनुष्य के बच जानें से कम खतरनाक नही है
इसलिए कह रहा हूँ लगातार
चलों उन दिनों की कुछ बातें करतें है।

©डॉ.अजित

Wednesday, May 25, 2016

कौतुहल

बहते जल की छोटी सी धारा में
बनता है एक छोटा भवँर
मुझे याद आती है
तुम्हारी नाभि
भँवर में समा जाता है
शाख से टूटा एक पत्ता
तब मुझे याद आती है
अपने कान की प्रतिलिपि
जो समा गई थी तुम्हारी नाभि में
मगर भँवर की तरह नही
बल्कि उस बच्चे की तरह
जो रेल की पटरी पर कान लगा
सुनता है रेलगाड़ी आने की ध्वनि
मेरी और उस बच्चे की मुस्कान में
कोई ख़ास अंतर नही था
वो आश्वस्ति से भरा था
और मैं एक कौतुहल से।

©डॉ.अजित

Tuesday, May 24, 2016

असुविधा

एक स्त्री कहती है
तुम्हारी वजह से
मैंने आत्महत्या को स्थगित कर दिया

एक स्त्री कहती है
तुम्हारी वजह से
एक दिन आत्महत्या कर सकती हूँ मैं

एक स्त्री कहती है
तुमनें जीवन का सच जान लिया है

एक स्त्री कहती है
सच ये है तुम बेहद डरपोक और भगौड़े हो
बस प्रतीत नही होने देते

एक पुरुष कहता है
तुम और बेहतर हो सकते हो

एक पुरुष कहता है
तुम कितने खाली और बेकार हो

एक बुजुर्ग कहता है
तुम आदमी काम के हो
मगर गलत वक्त पर पैदा हुए हो

एक बुजुर्ग कहता है
तुम दोषी हो
तुमनें रास्तों को मंजिल का सही पता न दिया

एक बच्चा कहता है
आपके जूते के फीते खुले है
शर्ट का एक बटन सही बंद नही है

एक बच्चा कहता
आपसे डर लगता है
आप हंसते कम हो

एक धर्म कहता है
ईश्वर एक है
वो दयालू है

एक धर्म कहता है
सब ईश्वरों का भी एक ईश्वर है
उसे नही मानोगे तो
तुम्हें दंड मिलेगा वो

इन सबसे एक
निरुपाय मनुष्य कहता है
हो सके तो
मुझे माफ़ करों

क्षमा का याचन पलायन नही
तटस्थता का अभिनय भी नही

दरअसल,
माफी मांगना एक सुविधा है
उनके लिए
जिन्होंने जीवन में चुनी हमेशा
असुविधा।

©डॉ.अजित 

Sunday, May 22, 2016

एक मेरे पिता थे
जो यदा-कदा कहतें थे
तुम्हारे बस का नही ये काम

एक वो है
जिनका पिता मैं हूँ
उनकी अपेक्षाओं पर जब होता हूँ खारिज़
ठीक यही बात कहतें वो
आपके बस का नही ये काम

दो पीढ़ियों के बीच
इतना मजबूर हमेशा रहा हूँ मैं
ये कोई ग्लैमराइज्ड करने की बात नही
ना अपनी काहिली छिपाने की
एक अदद कोशिश इसे समझा जाए

बात बस इतनी सी है
मैं चूकता रहा हूँ हमेशा बेहतर और श्रेष्ठतम् से
नही कर पाता
कुछ छोटे छोटे मगर बुनियादी काम
और मनुष्य होने के नातें
ये एक बड़ी असफलता है मेरी
यह भी करता हूँ स्वीकार

अपने पिता और पुत्रों के मध्य
संधिस्थल पर बैठा प्रार्थनारत हूँ न जाने कब से
घुटनों के बल बैठे बैठे मेरी कमर दुखने लगी है
मेरा कद  रह गया है आधा

इसलिए नही देख पाता
अपने आसपास बिखरी
छोटी-बड़ी खुशियों को

मेरे वजूद का यही एक ज्ञात सच है
जो बता सकता हूँ मैं
अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ।

©डॉ.अजित

Saturday, May 21, 2016

जीभ

शास्त्र के हिसाब से
देखा जाए तो
तुम्हारी जीभ पर
सरस्वती का वास है
मगर मेरे हिसाब से
वहां किसी का वास नही
वो तुम्हारे देह की सबसे मुक्त मांसपेशी है
जो जानती है देह से बाहर की यात्रा
प्रेम और गरिमा के साथ
तुम्हारे होंठों उसका भार कृतज्ञता से भरा है
वो समझती है स्पर्श का मनोविज्ञान
लौकिक और अलौकिकता से परे
शब्द,अर्थ, स्पर्श और यात्रा के जरिए
वो सहेजे है बेहद निजी
मगर उतने ही पवित्र प्रसंग
तुम्हारी जीभ महज वाणी का एक अंग नही
बल्कि चैतन्यता का एक अमूर्त आख्यान है
जो छपा है दिल ओ' दिमाग के ठीक बीचोबीच।

© डॉ.अजित

जलसा

अहसासों की एक जुम्बिश 
रोज़ शाम पीछा करती है
सफहों पर रक्खे कुछ लफ्ज़
हाशिये की बेरुखी से इल्तज़ा करते है 
तुम्हारी पोशीदा हथेलियों के टापू पर 
एक दरिया रोज़ मुझे बुलाता है 
वो चाहता है मैं डूब भी जाऊं और खुदकुशी भी न हो 

हवाओं ने तुम्हारी जुल्फों को पहरेदार बना दिया है 
वो आँखों के काजल को आंसूओं से सूखता देखती है
बादलों ने मेरे खत जला दिए है 
सूरज आजकल उनसे रोशनी उधार मांगकर ज़मी पर आता है 

तुम थोड़ी मुतमईन थोड़ी गाफिल होकर 
जब मुस्कुराती हो
कायनात तब अपने छज्जे से कुछ पंछी उड़ा देती है 
आसमान की बालकनी में 
एक गीला तौलिया टंगा है धूप उसकी तलाश में
मेरे घर की तलाशी लेती है 
वहां महज तुम्हारे ख्यालों की महक मिलती है तुम नही 
इस बात पर धूप मुझे ताना देती है
मुद्दत से मैं अंधेरो में जीता हूँ 
खुद की धड़कनों को तुम्हारे ख्याल के तबस्सुम से सीता हूँ

अजब सी कशमकश है 
मरासिम की एक वसीयत मेरे सिराहनें रखी है 
और मैं शिफ़ा के नुस्खे तलाश रहा हूँ 
चाँद तारों से तुम्हारी करवटों का हिसाब ले रहा हूँ 
वो खबरी नही है फिर भी मुझे बताते है 
तुम्हारे तकिए की बगावत के किस्से
और हंस पड़ते है 

इनदिनों, तुम्हारा जिक्र मैं उन रास्तों से करता हूँ 
जो अब कहीं नही जातें है 
वो मुझे कोई मशविरा नही देते नसीहत भी नही
बस मेरे पैर को चूम लेते है

आख़िरी चिट्ठी मुझे तुम्हारी अंगड़ाई की मिली थी
जिस पर लिखा था 
तुम याद आएं और मैं मुस्कुरा पड़ी

इन्ही तसल्लियों पर आजकल जिन्दा हूँ 
जिन्दा हूँ मगर एक ख्वाब की तरह
तुम दूर हो उस हकीकत की तरह
जिसकी रौशनी में 
हमारी पीठ एक दुसरे के सहारे टिकी है 

उदासियों का उर्स है
मैं खताओं की कव्वालियां गा रहा हूँ 
मेरे मुर्शिद ने मुझे सरे राह छोड़ा क्यों 
मुरीद का तमन्नाओं से दिल तोड़ा क्यों

खता का इल्म वफ़ा के अदब से भारी है
जमीं के जिस हिस्सें में तुम नही 
आजकल वहीं अपनी परदेदारी है।

©डॉ. अजित

मोक्ष

एक दिन ये देश छोड़ना चाहता हूँ
और एक दिन ये दुनिया
दुनिया और देश के अलावा भी
निर्वासन के लिए जगह तलाशता हूँ

जब कहीं की नागरिकता नही मिलती
मैं भटकता हूँ ब्रह्माण्ड में
किसी आवारा उल्का पिंड की तरह

मेरा नष्ट होना महज प्रकाश का चमकना नही होगा
मैं फ़ैल जाऊँगा राख की शक्ल में
उस द्वीप पर
जहां कोई स्त्री नही रहती

खरपतवार की पत्तियों पर नसीब होगी
मुझे आखिरी नींद
प्रेम का गल्प बनेगा
मेरे मोक्ष का एक शास्त्रीय प्रयोजन

इस तरह से खतम होगी मेरी
शून्य से शून्य की यात्रा।

©डॉ.अजित


Wednesday, May 4, 2016

स्मृतिलोप

और एकदिन कवि पाता है
अपनी सारी कविताएं बनावटी और खोखली
जैसे मन की सतह पर छाया हुआ
एक भावनात्मक झाग
या फिर एकालाप के अधूरे राग
जिनकी बंदिशें उलझी हुई है आपस में
वो हंसता है खुद पर
उस हंसी को देख डर सकता है कोई भी
और एकदिन कवि भूल जाता है
अपनी सारी कविताएं
वो महज़ पाठ ही नही भूलता
वो भूल जाता है कविता का शिल्प नुक्ते और मात्राएं
जब वो सुनता है कोई बढ़िया कविता
सबसे पहले उसे खारिज करता है
फिर करता है स्वीकार
कवि का स्मृतिलोप अदैहिक घटना है
कवि जिस दिन भूल जाता है कविता
ठीक उसी दिन उसका जीवन लगने लगता है कविता
जिसका पाठ होता है
यत्र तत्र सर्वत्र
कवि की अनुपस्थिति में।

© डॉ.अजित

Tuesday, May 3, 2016

बातें

मिलनें पर आदतन
वही सवाल किया उसनें
कैसी है तुम्हारी प्रेमिका
मैंने कहा
बिलकुल तुम्हारी जैसी
झूठ ! सफेद झूठ ! उसनें हंसते होते हुए कहा
मैनें कहा क्यों हो नही सकती?
नही हो सकती !
जब आज तक तुम्हारे जैसा कोई दूसरा न मिला
मेरे जैसे कोई कैसे मिल सकती है तुम्हें
हम्म ! कहकर बदल दी मैंने फिर बात
मगर देर तक हमारे बीच अकेला बैठा रहा
ये बेहद प्यारा सच।
***
ऐसा कई बार हुआ
फोन उठाना बन्द कर दिया उसनें
नही दिया जवाब किसी एसएमएस का
मैंने हर बात का बदला लिया
सिवाय इस बात के
जब भी आया फोन लपक कर उठा लिया
तलाश कर लिया धरती का सबसे सुरक्षित कोना
सुनता रहा उसे मुग्ध होकर
हर एसएमएस का दिया व्यंग्य रहित जवाब
बस इसी बात के लिए
आज भी मुझे शिद्दत से याद करती है वो।
***
उसने पूछा एकदिन
तुम्हारे जीवन के सबसे खराब दिन कौन से थे
मैंने कहा जब दिमाग ने दिल को को समझा दिया था
तुम नही हो आसपास
और सबसे अच्छे?
जब दिल ने दिमाग को कहा
शर्ते लगाना बन्द कर वो यही है आसपास
और सबसे तटस्थ दिन
अब मैं हंस पड़ा और कहा
वो याद नही कब थे
चलो मैं याद दिलाती हूँ उसनें कहा
तुम्हारे सबसे तटस्थ दिन तब थे
जब तुम दो लोगों के बातों पर
मुस्कुरा रहे थे एकसाथ
वो सबसे खराब दिन थे मेरे।

©डॉ.अजित