Saturday, May 21, 2016

जीभ

शास्त्र के हिसाब से
देखा जाए तो
तुम्हारी जीभ पर
सरस्वती का वास है
मगर मेरे हिसाब से
वहां किसी का वास नही
वो तुम्हारे देह की सबसे मुक्त मांसपेशी है
जो जानती है देह से बाहर की यात्रा
प्रेम और गरिमा के साथ
तुम्हारे होंठों उसका भार कृतज्ञता से भरा है
वो समझती है स्पर्श का मनोविज्ञान
लौकिक और अलौकिकता से परे
शब्द,अर्थ, स्पर्श और यात्रा के जरिए
वो सहेजे है बेहद निजी
मगर उतने ही पवित्र प्रसंग
तुम्हारी जीभ महज वाणी का एक अंग नही
बल्कि चैतन्यता का एक अमूर्त आख्यान है
जो छपा है दिल ओ' दिमाग के ठीक बीचोबीच।

© डॉ.अजित

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