और एकदिन कवि पाता है
अपनी सारी कविताएं बनावटी और खोखली
जैसे मन की सतह पर छाया हुआ
एक भावनात्मक झाग
या फिर एकालाप के अधूरे राग
जिनकी बंदिशें उलझी हुई है आपस में
वो हंसता है खुद पर
उस हंसी को देख डर सकता है कोई भी
और एकदिन कवि भूल जाता है
अपनी सारी कविताएं
वो महज़ पाठ ही नही भूलता
वो भूल जाता है कविता का शिल्प नुक्ते और मात्राएं
जब वो सुनता है कोई बढ़िया कविता
सबसे पहले उसे खारिज करता है
फिर करता है स्वीकार
कवि का स्मृतिलोप अदैहिक घटना है
कवि जिस दिन भूल जाता है कविता
ठीक उसी दिन उसका जीवन लगने लगता है कविता
जिसका पाठ होता है
यत्र तत्र सर्वत्र
कवि की अनुपस्थिति में।
© डॉ.अजित
अपनी सारी कविताएं बनावटी और खोखली
जैसे मन की सतह पर छाया हुआ
एक भावनात्मक झाग
या फिर एकालाप के अधूरे राग
जिनकी बंदिशें उलझी हुई है आपस में
वो हंसता है खुद पर
उस हंसी को देख डर सकता है कोई भी
और एकदिन कवि भूल जाता है
अपनी सारी कविताएं
वो महज़ पाठ ही नही भूलता
वो भूल जाता है कविता का शिल्प नुक्ते और मात्राएं
जब वो सुनता है कोई बढ़िया कविता
सबसे पहले उसे खारिज करता है
फिर करता है स्वीकार
कवि का स्मृतिलोप अदैहिक घटना है
कवि जिस दिन भूल जाता है कविता
ठीक उसी दिन उसका जीवन लगने लगता है कविता
जिसका पाठ होता है
यत्र तत्र सर्वत्र
कवि की अनुपस्थिति में।
© डॉ.अजित
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