Friday, June 20, 2014

कमजोरी

विश्वास और शंका के मध्य
एक महीन रेखा होती है
किमकर्तव्यविमूढ़ता की
जो बचाती है
सम्बन्धों का भूगोल
जीवन वृत्त सा गोल है
मगर हम भागते है
अपने आयतन के हिसाब से
सबके अपने पैमाने है
नापने के
इसलिए विश्वास और शंका
दोनों हमेशा सही साबित होगी
यह कहना थोड़ा मुश्किल काम है
मनुष्य रचता है स्वयं
विकल्पों का संसार
सम्भावनाओं का व्यापार
उसकी जीत की जिद
अहंकार के व्याकरण की उपज होती है
और हार का डर
आंतरिक निराश का परिणाम
सम्बन्धों की प्रमेय सिद्ध करने के लिए
सबके अपने समीकरण है
शंका और विश्वास
जीवन का सम्पूर्ण बीजगणित नही होता
बल्कि यह समझदार होने का छलावा है
जिसे किसी मनुष्य की सीमा समझ
क्षमा करने के आधार खोजे जा सकते है
दरअसल
खुद की तलाश हमे बाध्य करती है
विश्वास छल शंका समर्पण के
इर्द- गिर्द जीने के लिए
आंतरिक रिक्तता अनुराग की बेल
चढ़ाती है मनुष्य के कमजोर कंधो पर
उसकी हरियाली में
खो जाना मानवीय कमजोरी है
ऐसे में जिन्दगी की जद्दोजहद में
हांफता भागता मनुष्य
यदि कभी गलती करता है तो
मुझे खूबसूरत लगता है
घृणास्पद नही।

© डॉ. अजीत

Thursday, June 19, 2014

सलामत

इस शहर के सारे दरख्त
अदालत में मुकरे हुए गवाह है

इस शहर की गलियाँ
भूलभूलैय्या है

इस शहर की हवा
बेहद हल्की है

इस शहर तक आते आते
नदियाँ रास्ता बदल लेती है

इस शहर में फूल
कलियों के एहसानमंद नही

इस शहर में पत्थर
वजूद से बड़े है

इस शहर में बुनियाद छोटी
ईमारत मगर ऊंची है

इस शहर में बादल अनमने
और बारिश उदास है

इस शहर में बच्चें समझदार
और बड़े लापरवाह है

ताज्जुब है तुम इस शहर में रहकर भी
मुहब्बत की बात करती हो
वफा, इबादत के खत लिखती हो

किसी को इल्म नही होगा
ये शहर तुम्हारी दुआओं पर जिंदा है


अपने गाँव की मुंडेर से
मै दुआ फूंकता हूँ
लोबान जलाकर
तुम सलामत रहो
ताकि ये शहर
सलामत रहे।

© डॉ. अजीत

Wednesday, June 18, 2014

इजाजत

जो हो इजाजत तेरे कॉटन के दुपट्टे से पसीना पूछं लूं
माथे पे जो छलक आया है तेरे तसव्वुर में !
तेरे गीले बालों के सावन की एक बूँद
मेरे आँख में उतर गई है चुपके से
आंसूओं से मिल वो अपनी ठंडक खो बैठी
जो हो इजाजत मै पलकें भिगो लूं
जज्बातों को एहसास का सफीना दे दूं
जो हो इजाजत एक बार छू कर देखूं तुम्हे !
आवारा ख्यालों अधूरी ख्वाहिशों
के वजीफे भेज रहा हूँ तुम्हे
तुम्हारी शक्ल में।
© डॉ. अजीत

Monday, June 16, 2014

भविष्यवाणी

हर कविता लिखने बाद
ऐसा लगता है जैसे
विषय समाप्त हो गए सभी
नही रहा अब कहने को
कुछ भी शेष
अपने शब्दकोश से
खुद प्रतीक, बिम्बों और
उपमाओं को रीतता देखता हूँ
नए शब्द गढ़ते मन
हथोड़े सा भारी हो जाता है
आहत भावनाओं की धौकनी के ताप पर
दिल लौहे सा पिटता है अक्सर
हरेक कविता मुझे गलाकर
शब्दों का आकार लेती है
कविता लिखना दरअसल
खुद को भरने
और खाली करने का एक
अनियोजित उपक्रम है
इसमें पाठकीय स्वाद का
होना संयोग और
दुःख के सहअस्तित्व
का प्रमाण समझा जा सकता है
कविता छोटी या बड़ी नही होती
ना ही प्रेम अथवा अप्रेम की
कविता होती है
यह एक विकल मन की
मूक बधिर सी अभिलाषा होती है
जो अन्तस् से बह निकलती है खुद ब खुद
इसलिए दावे से यह बात कही जा सकती है
जब तक मै जिन्दा हूँ
मेरी कविता जिन्दा रहेगी
पाठको की पसंद और
नापसंद के बीच
अल्हड, बेपरवाह  और अनियमित
विद्वानों के मध्य
इसे एक अकवि की भविष्यवाणी
समझा जाए।
© डॉ. अजीत

Wednesday, June 11, 2014

हितचिंता

मेरे प्रस्ताव इतने खुले किस्म के थे
उनमे गुह्यता के आकर्षण शेष नही बचे
मेरे चुनाव इतने अप्रासंगिक किस्म के थे
उनकी उपयोगिता कभी नही रही
मेरे सामंजस्य इतने अर्थहीन किस्म के थे
वो कभी तुम्हें बाँध नही पाएं
मेरे शब्द इतने खोखले किस्म के थे
उनमें अभिव्यक्ति का संकट हमेशा बना रहा
मेरे अनुमान इतने अतार्किक किस्म के थे
वो वस्तुस्थिति का कभी अंदाजा नही लगा पाए
मेरी अपेक्षाएं इतनी सतही किस्म की थी
वो प्रेम,मित्रता और परिचय में भेद न कर सकी
मेरी जटिलताएं इतनी सघन किस्म की थी
उसमें तुम्हारा पनपना असम्भव था
मेरा होना न होने से बड़ा था
तुम्हारे एकाधिकार की त्रिज्या जितना
सीमित नही था मेरा व्यास
जीवन के दो विपरीत ध्रुवों पर टिके
यह औपचारिक रिश्तें
भरभरा कर गिरने के लिए ही शापित थे
अफ़सोस दरअसल मनुष्य के अपूर्ण स्वार्थ की
वह रुपरेखा है जिसे षड्यंत्र की शक्ल में वह
नेपथ्य में रचता है
ज्ञानीजन इसे आशा कहते है
प्रेम हो मित्रता या मात्र परिचय
सबकी आयु निर्धारित होती है
ठीक मनुष्य की तरह
सुख और दुःख दोनों ही
प्रारब्ध और नियति की अवैध संतान है
अपने हिस्से का सुख-दुःख भोगने के बाद
सपनों की शिकायत करने का
अधिकार छोड़ना पड़ता है
जितनी जल्दी यह कौशल सीख लोगी
सुविधा से कटेगा संताप
इस सलाह को
मेरी अंतिम हितचिंता समझ सकती हो
वैसे सच तो यह भी है
जीवन में अंतिम कुछ नही होता।
© डॉ. अजीत






Sunday, June 8, 2014

रिश्ता

तुमसे मेरा रिश्ता
लाइक से लाइक तक का
खुद से मेरा रिश्ता
कमेन्ट से कमेन्ट तक
दुनिया से मेरा रिश्ता
शेयर से शेयर तक
दोस्त जिन्दगी में टंगे है
टैग की तरह
ये जो स्टेट्स है
कुछ झूठ कुछ शिकायतों
के पुलिंदे भर है
ये जो फोटो एल्बम है
यह खुद को तलाशने की
एक नाकाम कोशिस भर है
सासों से ज्यादा जरूरी है
इंटरनेट का कनेक्शन
सोचा न था
जिन्दगी फेसबुक हो जाएगी
और फेसबुक जिन्दगी।
© डॉ. अजीत