हर कविता लिखने बाद
ऐसा लगता है जैसे
विषय समाप्त हो गए सभी
नही रहा अब कहने को
कुछ भी शेष
अपने शब्दकोश से
खुद प्रतीक, बिम्बों और
उपमाओं को रीतता देखता हूँ
नए शब्द गढ़ते मन
हथोड़े सा भारी हो जाता है
आहत भावनाओं की धौकनी के ताप पर
दिल लौहे सा पिटता है अक्सर
हरेक कविता मुझे गलाकर
शब्दों का आकार लेती है
कविता लिखना दरअसल
खुद को भरने
और खाली करने का एक
अनियोजित उपक्रम है
इसमें पाठकीय स्वाद का
होना संयोग और
दुःख के सहअस्तित्व
का प्रमाण समझा जा सकता है
कविता छोटी या बड़ी नही होती
ना ही प्रेम अथवा अप्रेम की
कविता होती है
यह एक विकल मन की
मूक बधिर सी अभिलाषा होती है
जो अन्तस् से बह निकलती है खुद ब खुद
इसलिए दावे से यह बात कही जा सकती है
जब तक मै जिन्दा हूँ
मेरी कविता जिन्दा रहेगी
पाठको की पसंद और
नापसंद के बीच
अल्हड, बेपरवाह और अनियमित
विद्वानों के मध्य
इसे एक अकवि की भविष्यवाणी
समझा जाए।
© डॉ. अजीत
ऐसा लगता है जैसे
विषय समाप्त हो गए सभी
नही रहा अब कहने को
कुछ भी शेष
अपने शब्दकोश से
खुद प्रतीक, बिम्बों और
उपमाओं को रीतता देखता हूँ
नए शब्द गढ़ते मन
हथोड़े सा भारी हो जाता है
आहत भावनाओं की धौकनी के ताप पर
दिल लौहे सा पिटता है अक्सर
हरेक कविता मुझे गलाकर
शब्दों का आकार लेती है
कविता लिखना दरअसल
खुद को भरने
और खाली करने का एक
अनियोजित उपक्रम है
इसमें पाठकीय स्वाद का
होना संयोग और
दुःख के सहअस्तित्व
का प्रमाण समझा जा सकता है
कविता छोटी या बड़ी नही होती
ना ही प्रेम अथवा अप्रेम की
कविता होती है
यह एक विकल मन की
मूक बधिर सी अभिलाषा होती है
जो अन्तस् से बह निकलती है खुद ब खुद
इसलिए दावे से यह बात कही जा सकती है
जब तक मै जिन्दा हूँ
मेरी कविता जिन्दा रहेगी
पाठको की पसंद और
नापसंद के बीच
अल्हड, बेपरवाह और अनियमित
विद्वानों के मध्य
इसे एक अकवि की भविष्यवाणी
समझा जाए।
© डॉ. अजीत
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