Friday, June 20, 2014

कमजोरी

विश्वास और शंका के मध्य
एक महीन रेखा होती है
किमकर्तव्यविमूढ़ता की
जो बचाती है
सम्बन्धों का भूगोल
जीवन वृत्त सा गोल है
मगर हम भागते है
अपने आयतन के हिसाब से
सबके अपने पैमाने है
नापने के
इसलिए विश्वास और शंका
दोनों हमेशा सही साबित होगी
यह कहना थोड़ा मुश्किल काम है
मनुष्य रचता है स्वयं
विकल्पों का संसार
सम्भावनाओं का व्यापार
उसकी जीत की जिद
अहंकार के व्याकरण की उपज होती है
और हार का डर
आंतरिक निराश का परिणाम
सम्बन्धों की प्रमेय सिद्ध करने के लिए
सबके अपने समीकरण है
शंका और विश्वास
जीवन का सम्पूर्ण बीजगणित नही होता
बल्कि यह समझदार होने का छलावा है
जिसे किसी मनुष्य की सीमा समझ
क्षमा करने के आधार खोजे जा सकते है
दरअसल
खुद की तलाश हमे बाध्य करती है
विश्वास छल शंका समर्पण के
इर्द- गिर्द जीने के लिए
आंतरिक रिक्तता अनुराग की बेल
चढ़ाती है मनुष्य के कमजोर कंधो पर
उसकी हरियाली में
खो जाना मानवीय कमजोरी है
ऐसे में जिन्दगी की जद्दोजहद में
हांफता भागता मनुष्य
यदि कभी गलती करता है तो
मुझे खूबसूरत लगता है
घृणास्पद नही।

© डॉ. अजीत

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।