Monday, February 14, 2011

समझ

दोस्ती भटकती रही महफिल में

दोस्त समझदार हो गये

बिकने के लिए जब वो निकला

बेचने वाले खरीददार हो गये

एक बार मिला तो ऐसे मिला

तन्हा भी उसके तलबगार हो गये

जिसने रोशन की थी शमा

वो हवाओं के पैरोकार हो गये

सफर मे जो फकीर मिले थें

वो अब ज़मीदार हो गये

हवेली गिरवी रख कर

लोग अब किरायेदार हो गये

उसने मशविरा किया गैर से

तब महसूस हुआ बेकार हो गये

फैसला उसका था दिल मेरा

फिर दोनो मयख्वार हो गये...।

डा.अजीत

Tuesday, February 8, 2011

दुश्मन दोस्त

कुछ शब्द

बुरे वक्त के

अच्छे दोस्त के नाम

और एक धन्यवाद

अच्छे वक्त के बुरे

दोस्त के नाम

लिखकर मै उस राहत

का अनुभव करना

चाहता हूँ जिसका

बोझ ढो रहा हूँ

लम्बे अरसे से

सच तो यह है कि

दोस्त कभी बुरे

नही होते

बुरा होता है वह वक्त

जब कोई अपना लगता है

या फिर पराया

अपने-पराये का ये भेद

दरअसल उस उम्मीदों

के संसार का छलावा है

जिसमे लोग करीब आकर

बिछड जातें हैं और

छोड जातें है एक टीस

ज़िन्दगी भर के लिए

धन्यवाद और शिकायत

के सहारे उनको याद करके

जी भर कर कोसा जा सकता हैं

कुछ पुराने साथियों को

उनकी कुछ अच्छी कुछ बुरी

आदतों के लिए

जिसकी वजह से

हम प्यार के बाद

नफरत करना सीख पायें...।

डा.अजीत

Monday, February 7, 2011

नाराज़गी

नाराज़ होने का हक

खो देना बडी बात नही थी

बडी बात यह थी उसका

नाराज़ होना किसी और बात पर

और जिक्र मेरा ले आना

नाराज़गी तो चलती रहती

उम्र भर

लेकिन किसी दूसरे की नाराज़गी

ढोना मेरे लिए मुश्किल था

वो अफसाना जिसमे मेरा जिक्र भी

न आया हो

और लोग मुझसे ऐसे नाराज़ बैठे है

जैसे मैने किसी का पुराना उधार मार लिया हो

बेशर्मी के साथ

मै अपनी सफाई मे क्या कह पाता

जिस महफिल में कत्ल का फरमान

उसका ओहदा तय कर रहा हो

मुझे याद नही कि मै किसी से

इस कदर नाराज़ रहा हूँ कि

उसकी बात तो क्या शक्ल भी देखना

पसंद न करुं

लेकिन आज वो वक्त है

जब बेबात लोग मेरी सोहबत से

बचकर निकल लेते हैं

महफिल की दुहाई देकर

नाराज़ लोगो को खुश करने के लिए

और नाराज़गी आजकल मै तुझसे

बहुत नाराज़ हूँ क्योंकि तेरे पास

कोई वजह नही है

दिल दुखाने की ठीक मेरी तरह....।

डा.अजीत

Tuesday, February 1, 2011

चाहत

फर्जी दलीलें अभी

तक जिन्दा हैं वकालतनामे के साथ

गवाह बिकना चाहता है बार-बार

मुजरिम अपने

गुनाह पर शर्मिन्दा नही बेचैन है

और फख्र के साथ कहता है

मेरी बर्बादी का ताल्लुक

उसकी सोहबत से है

मुंसिफ बदलते जा रहें है

मुकदमे की तारीख की तरह

रहबर तब्सरा कर रहे है

और रहजन तनकीद

ऐसे दिलचस्प माहौल में

उसने कहा क्यों न आप

कल की बात करें

मैं समझ नही पाया

बीता हुआ कल या आने वाला कल

ये फर्क मिट जाता

तो दिल की कसक को

तसल्ली होती

और वो बेरंग शाम में

होश जदा रहने की ख्वाहिश

करता मय,मीना और साकी

से यह गुजारिश करता कि

अब वह जीना चाहता है

कल,आज और कल के लिए नही

बल्कि उसके लिए

जिसने उसको बर्बाद किया

अपनी शर्त पर...।

डा.अजीत