Monday, February 14, 2011

समझ

दोस्ती भटकती रही महफिल में

दोस्त समझदार हो गये

बिकने के लिए जब वो निकला

बेचने वाले खरीददार हो गये

एक बार मिला तो ऐसे मिला

तन्हा भी उसके तलबगार हो गये

जिसने रोशन की थी शमा

वो हवाओं के पैरोकार हो गये

सफर मे जो फकीर मिले थें

वो अब ज़मीदार हो गये

हवेली गिरवी रख कर

लोग अब किरायेदार हो गये

उसने मशविरा किया गैर से

तब महसूस हुआ बेकार हो गये

फैसला उसका था दिल मेरा

फिर दोनो मयख्वार हो गये...।

डा.अजीत

4 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जिसने रोशन की थी शमा
वो हवाओं के पैरोकार हो गये

खूबसूरत गज़ल ....

M. Afsar Khan said...

bahut khoob
kafi sundar rachna

shukriya

ज्योति सिंह said...

bahut hi achchhi rachna .

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बिकने के लिए जब वो निकला बेचने वाले खरीददार हो गये ....

गहरी वेदना है इस पंक्ति में...
भावपूर्ण कविता के लिए बधाई।