दोस्ती भटकती रही महफिल में
दोस्त समझदार हो गये
बिकने के लिए जब वो निकला
बेचने वाले खरीददार हो गये
एक बार मिला तो ऐसे मिला
तन्हा भी उसके तलबगार हो गये
जिसने रोशन की थी शमा
वो हवाओं के पैरोकार हो गये
सफर मे जो फकीर मिले थें
वो अब ज़मीदार हो गये
हवेली गिरवी रख कर
लोग अब किरायेदार हो गये
उसने मशविरा किया गैर से
तब महसूस हुआ बेकार हो गये
फैसला उसका था दिल मेरा
फिर दोनो मयख्वार हो गये...।
डा.अजीत
4 comments:
जिसने रोशन की थी शमा
वो हवाओं के पैरोकार हो गये
खूबसूरत गज़ल ....
bahut khoob
kafi sundar rachna
shukriya
bahut hi achchhi rachna .
बिकने के लिए जब वो निकला बेचने वाले खरीददार हो गये ....
गहरी वेदना है इस पंक्ति में...
भावपूर्ण कविता के लिए बधाई।
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