Monday, February 7, 2011

नाराज़गी

नाराज़ होने का हक

खो देना बडी बात नही थी

बडी बात यह थी उसका

नाराज़ होना किसी और बात पर

और जिक्र मेरा ले आना

नाराज़गी तो चलती रहती

उम्र भर

लेकिन किसी दूसरे की नाराज़गी

ढोना मेरे लिए मुश्किल था

वो अफसाना जिसमे मेरा जिक्र भी

न आया हो

और लोग मुझसे ऐसे नाराज़ बैठे है

जैसे मैने किसी का पुराना उधार मार लिया हो

बेशर्मी के साथ

मै अपनी सफाई मे क्या कह पाता

जिस महफिल में कत्ल का फरमान

उसका ओहदा तय कर रहा हो

मुझे याद नही कि मै किसी से

इस कदर नाराज़ रहा हूँ कि

उसकी बात तो क्या शक्ल भी देखना

पसंद न करुं

लेकिन आज वो वक्त है

जब बेबात लोग मेरी सोहबत से

बचकर निकल लेते हैं

महफिल की दुहाई देकर

नाराज़ लोगो को खुश करने के लिए

और नाराज़गी आजकल मै तुझसे

बहुत नाराज़ हूँ क्योंकि तेरे पास

कोई वजह नही है

दिल दुखाने की ठीक मेरी तरह....।

डा.अजीत

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

सुंदर चित्रण....बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

Anonymous said...

बहुत सुन्दर और बेबाक अभिव्यक्ति।

लीना मल्होत्रा said...

और नाराज़गी आजकल मै तुझसे बहुत नाराज़ हूँ क्योंकि तेरे पास कोई वजह नही है दिल दुखाने की ठीक मेरी तरह....hm ahsaas dikhe ..badhai.