Sunday, April 30, 2023

नियति

 मुझसे मिलने के बाद भी

वह बनी रही नियतिवादी

मेरा मिलना भी 

उसे भाग्य पर पुनर्विचार के लिए 

अवसर न दे सका


कमोबेश मैं भी भीड़ के 

दूसरे लोगों जैसा ही निकला

कुछ नया घटित न हुआ 

मेरे मिलने के बाद भी 


वो कोसती रही ईश्वर और भाग्य को 

अलग-अलग ध्वनि और स्वर में 

जिसे बोध समझा गया बाद में


जबकि 

मैंने चाहा था हमेशा 

मैं बदल दूं उसकी खुद के बारे में बनी

सब जड़ मान्यताएं 


मैंने चाहा था कि

मैं घटित हो जाऊं उसके जीवन में

किसी आकस्मिक चमत्कार की तरह 

जिसके बाद वो हो सके 

ईश्वर के प्रति कृतज्ञ 


मुझसे मिलने के बाद 

उसके हिस्से हँसी आई थी

यह अच्छी बात जरूर कही जा सकती है


मेरे बाद 

वो किस तरह से मुझे रखेगी याद

नहीं जानता हूँ मैं


मगर जानता हूँ इतना 

मुझसे मिलने के बाद 

यदि बदल जाता उसका कुछ अंश जीवन 

कितना सुखद होता है सब  


उससे मिलने के बाद

मैं भी बना नियतिवादी

और देने लगा

ईश्वर को दोष 

कविता की शक्ल में।


©डॉ. अजित