Saturday, January 2, 2010

बीजगणित

सन्दर्भ
प्रसंग
व्याख्या
तीनो के समन्वय
मे उर्जा का नही
सम्वेदना का कितना
व्यय हुआ
इसका विवरण
जीवन के बीजगणित मे
तलाशना चाहता हू
सम्बन्ध जीने से जीया जाता है
इससे कोई औपचारिक आपत्ति नही है
लेकिन यदि सम्बन्ध जीते- जीते यह अहसास होने लगे
कि
इस कौशल का प्रयोग
कभी भी अप्रत्याशित दिशा तय कर लेगा
स्वत:
तब
खिन्नता का बोध नही ‘बोझ’
कदमो मे लडखडाहट भर देता है
आवाज मे रिक्त कम्पन
सम्वेदना/अतीत/स्मृति के दर्शन से पोषित
सम्बन्धो की धरा
सदैव उर्वरा रहने का
स्वाभाविक अधिकार रखती है
लेकिन
पारस्परिक अनुभुतियो के
व्यापक संसार मे
वेदना का एक पक्षीय व्यापार
सम्बन्धो की समसामयिकता
पर प्रश्नचिन्ह लगाता
प्रतीत होता है
और
प्रासंगिकता पर
अप्रासंगिक होने का सतत भय
एक दिन स्थाई रुप से मौन कर देता है
समस्त अपेक्षाबोध को
जीवन की अस्थाई रिक्तता के बोध प्रणय से उपजे सम्बन्ध
बचपन की स्मृतियो की भांति
व्यस्क होने से पूर्व ही
अपना अर्थ खो देते है
अर्थ खोना उतना बडा खेद का विषय नही है
जितना इस अप्रमेय समीकरण मे
अपने व्यक्ति विश्लेषण की समीक्षा की
पुनर्समीक्षा की बात सोचना
क्योंकि अतीत के स्थाई भाव,प्ररेणा
को एक झटके से छोडकर
सहजभाव से जी पाना
मुश्किल नही
असम्भव है
किसी भी सम्वेदनशील व्यक्ति के लिए
मुझे ऐसा लगता है
अक्सर
पता नही क्यों...?
डा.अजीत

1 comment:

अर्चना तिवारी said...

सबसे पहले नव वर्ष कि शुभकामनाएँ...आप इतने दिनों बाद आए आपका फिर से स्वागत है इस ब्लॉग जगत में...आप अपने ब्लॉग को 'चिट्ठाजगत' में पंजीकृत करवा लें तो आपकी रचनाओं का आनंद अधिक से अधिक लोग कर सकेंगे..