Tuesday, January 5, 2010

विरोधाभास

त्रासदीपूर्ण जीवनशैली
अवसादो से भरी नियति
सुख के छींटे शायद ही पडे हो
कभी- कभी
और
दुख एक स्थाई भाव
इतने निराशावादी
प्रतिमानो के साथ
जीवन मे
आत्मविश्वासपूर्वक ‘सामान्य’
एवम लौकिक सम्भावनाए तलाशने
के तुम्हारे प्रयास पर
कोई भी सम्वेदनशील व्यक्ति
हतप्रभ हो सकता है
ठीक उसी तरह
जैसे मैने अपना बचाव किया था
दार्शनिकता एवम बौधिकता से पूर्ण
अभिव्यक्ति मे
तार्किकता तलाश कर
इस प्रकार के प्रयास
मेरे जैसे व्यक्ति के लिए
सदैव बौधिक हथकंडे रहे है
प्रभाव उत्पादन के लिए
लेकिन
यथार्थ की सीमाओ
से शंकित मन से स्वत:
तंत्र विकसित किया
स्वीकृति के साथ
अस्वीकृति के बोध का
प्रतिमान/दृष्टिकोण/अनुभव
और सम्भावनाओ के विकल्प
के रुप मे इतनी पारस्परिक भिन्नता
होने के बाद भी
तुम्हारा प्रखर आशावाद
मेरे लिए प्राय:बौधिक बैचेनी का
विषय रहा है
ऐसी बैचेनी जिसको कभी
अभिव्यक्ति नही मिली
घुटन/अवसाद/कुंठा का
संताप भोगते हुए
कभी-कभी लगा
कि
तुम्हारी समझ मे समग्रता का अभाव है
या व्यक्तिविश्लेषण का
अचानाक ख्याल आता है
संक्षिप्त विरोधाभास
आंशिक अपेक्षाबोध
और व्यापक सम्वेदना के धरातल पर
कुछ नये सम्बन्धो का
’अर्थ’ तलाशते
तुम्हारे परिपक्व प्रयास
कही प्रतिभासी
विरोधाभास से उपजी
महज एक बौधिक फसल
तो नही
जीवन के समानांतर यथार्थ/नियति
और असामान्यबोध
के बीच
तुम्हारी उपस्थिति उपलब्धि है
अथवा
एक बौधिक त्रासदी
जिसको भोगना
कभी सुखद लगता है
तो कभी
बडा असहनीय....।
डा.अजीत

1 comment:

pawan lalchand said...

ajeetji, vicharon ke uthate jabardust virodhon-untervirodhon ki rooprekha khinchne ki koshish ki hai apne, jisme kamyab bhi rhe hai aap. aur kabita padhte ye akele apki mansthithi hi nahi lagti balki apni bhi lagti hai..
shesh fir...pawan