Monday, January 4, 2010

चिंतन

अक्सर
मित्र/परिचित
शुभचिंतक एवम हितचिंतक
एक तार्किक सवाल करते है
और क्या चल रहा है आजकल?
इस चलने का अभिप्राय
कुछ करने से होता है
पता नही उनका सवाल
गतिशीलता के मानक तय करता है
अथवा
जडता की गहराई की
सम्भावना तलाशता है
हो सकता उनकी जिज्ञासा
नियोजन से सम्बन्धित हो
लेकिन कुछ करना
और कुछ भी न करना
दोनो दर्शनो की
तात्विक समीक्षा का अधिकार
सदैव
इनके पास सुरक्षित रहता है
और
मेरी प्रतिक्रिया इनके बौधिक आग्रह,अपेक्षाओ
से विरोधाभासी रही है
मेरे चिंतन की दिशा
कुछ करने
और कुछ भी न करने के मध्य से
रेंगती हुई
क्या करु?
क्या किया जा सकता है
आदि की दिशा मे
बढती जाती है
प्राय:ऐसे सवाल
मानसिक खीझ का विषय
बनते है
और निजता का हनन का बोध
अलग से
लेकिन
कुछ भी अप्रत्याशित करना
उपलब्धि एवम सम्बन्धता के
संयुक्त मनोविज्ञान की उपज होती है.
जिससे अभिप्रेरणा प्राप्त
हमारे ‘आत्मीय’
अपने प्रश्नो के साथ
बहुत सारे करने के
विकल्प भी साधिकार
प्रस्तुत करते है
जिनकी व्यंजना
कभी परामर्श लगती है
तो कभी एक नसीहत भी
बडा सवाल यह पैदा होता है
कि समग्र व्यक्तित्व के मूल्यांकन
के मानक क्या कुछ करने
या कुछ विशेष करने से ही
तय होते है?
मानवीय अस्तित्व का
कोई महत्व नही
समग्र निजता का भी कोई अर्थ नही
कुछ भी न करने का दर्शन
कुछ करने से कही अर्थो मे
न केवल व्यापक है
बल्कि जटिल भी
जिसे अक्सर
मेरी अकर्मण्यता मानकर
विभिन्न विकल्पो के प्रस्ताव
प्रस्तुत किए जाते है
और मेरे लिए
ये शायद की कभी सम्भव हो
कि अस्तित्व/चिंतन/निजता/अभिप्ररेणा/महत्वकाक्षाओ
के नितांत ही
व्यक्तिगत स्रोत त्याग कर उनकी कुंठाओ/ महत्वकाक्षाओ
के बोझ को ढो संकू
लेकिन
रोचक बात यह है
कि
उनके प्रयासो की उर्जा
एवम बौधिक आग्रह को देखकर
कभी- कभी
मुझे भी लगने लगता है
कि
आखिर मै कर क्या रहा हू....?
डा.अजीत

3 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

जिसे अक्सर
मेरी अकर्मण्यता मानकर
विभिन्न विकल्पो के प्रस्ताव
प्रस्तुत किए जाते है
और मेरे लिए
ये शायद की कभी सम्भव हो
कि अस्तित्व/चिंतन/निजता/अभिप्ररेणा/महत्वकाक्षाओ
के नितांत ही
व्यक्तिगत स्रोत त्याग कर उनकी कुंठाओ/ महत्वकाक्षाओ
के बोझ को ढो संकू

बहुत अच्छे भाव हैं अजित जी आपके .....स्वागत है आपका ....आपसे इसी प्रकार की अच्छी रचनाओं की उम्मीद रहेगी .....!!

हाँ ये वर्ड verification हटा लें ......!!

pawan lalchand said...

mitr, ye chintan nahi varan sangharshrat ek insan ki halat hai, jo aksar apno ke aise savalo ke javab deta rhta hai..kavita ke bhav gahare or ati gambhir hai... lage rho doc saab

सागर said...

वाह...