Thursday, June 3, 2010

ऐसा ही हूँ मैं

मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।
(उपरोक्त पंक्तियाँ मेरी मौलिक नहीं हैं मैंने कही पर पढ़ी और अच्छी लगी सो अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दी है,वैसे जिसने भी लिखी है काफी दमदार लिखी है उसको आभार)

5 comments:

माधव( Madhav) said...

wah wah wah wah

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बाद की दो लाइनें तो सोना हैं.

दिलीप said...

waah adbhut

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना !!

Shekhar Kumawat said...

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.