परेशान दोस्तों के लिए एक कविता
चला जाऊँगा एक दिन
जैसे हर दिन चला जाता है कभी न लौटने के लिए
चला जाऊँगा जैसे चला जाता है सभा के बीच से उठाकर कोई
जैसे उम्र के साथ जिंदगी से चले जाते हैं सपने तमाम
जैसे किसी के होठों पर एक प्यास रख उम्र चली जाती है
इतने परेशान न हो मेरे दोस्तों
कभी सोचा था बस तुम ही होगे साथ और चलते रहेंगे क़दम खुद ब खुद
बहुत चाहा था तुम्हारे कदमो से चलना
किसी पीछे छूट गए सा चला जाऊँगा एक दिन दृश्य से
बस कुछ दिन और मेरे ये कड़वे बोल
बस कुछ दिन और मेरी ये छटपटाहट
बस कुछ दिन और मेरे ये बेहूदा सवालात
फिर सब कुछ हो जाएगा सामान्य
खत्म हो जाऊँगा किसी मुश्किल किताब सा
कितने दिन जलेगी दोनों सिरों से जलती यह अशक्त मोमबत्ती
भभक कर बुझ जाऊँगा एक दिन सौंपकर तुम्हें तुम्हारे हिस्से का अन्धेरा
उम्र का क्या है खत्म ही हो जाती है एक दिन
सिर्फ साँसों के खत्म होने से ही तो नहीं होता खत्म कोई इंसान
एक दिन खत्म हो जाऊँगा जैसे खत्म हो जाती है बहुत दिन बाद मिले दोस्तों की बातें
एक दिन रीत जाउंगा जैसे रीत जाते है गर्मियों में तालाब
एक मुसलसल असुविधा है मेरा होना
तिरस्कारों के बोझ से दब खत्म हो जायेगी यह भी एक दिन
दृश्य में होता हुआ हो जाऊँगा एक दिन अदृश्य
अँधेरे के साथ जिस तरह खत्म होती जाती हैं परछाईयाँ
एक दिन चला जाउंगा मैं भी
जैसे हर दिन चला जाता है कभी न लौटने के लिए....
अशोक कुमार पाण्डेय
ब्लॉग: http://asuvidha.blogspot.com/
3 comments:
बहुत समय से आपकी कोई रचना नहीं आई ...आपकी पीड़ा को शब्द दिए हैं आपके मित्र ने ...
गहन पीड़ा है ..
छोड़ कर चला जाऊंगा जब इस आशियाने को,
वफायें याद आयेंगीं मेरी तब इस ज़माने को..!!
भाईसाहब उम्मीद है यूँ इस तरह अपनी पीड़ा को हम सभी के साथ शेयर करके अब आप सुकून महसूस कर रहे होंगे. आपका धन्यवाद् आपने हमारे साथ अपनी पीड़ा बांटी. क्योंकि मैने कहीं पढ़ा था कि "sharing is caring"
प्रशंसनीय रचना - बधाई
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