मुश्किल वक्त
कितना मुश्किल लगने
लगता है जब
दोस्ती की बीच में
समझदारी उग आयें
रात के अक्सर नींद न आयें
पत्नि बिना वजह समझाए
दुश्मनों से सलाह लेनी पड जाए
मर्ज़ की दवा कम पड जाए
ऐसे बुरे वक्त से गुजरता
अक्सर यह सोचता हूँ
रात के बाद सवेरा है
ये सब कहते-सुनते आयें है
लेकिन रात कितनी बडी हो जाती है
इसके लिए अपने से सूरज़ की
दूरी मापनी होगी
जिसे मापते हुए
मै पसीना-पसीना हो रहा हूँ
इस सर्द रात में...
नया साल भी
कितना जालिम निकला...!
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