करीब
आकर भी दूर चले जाते है
कुछ
लोग नजरों से उतर जाते है
हर
साल कैलेंडर की तरह
दोस्त
क्यूँ बदल जाते है
वो
बुत बना देखता है तमाशा
फिर
क्यों उसके दर पे जाते है
कुछ
पैमाने हमसे इसलिए खफा है
छोटे
जाम हम अक्सर छोड जाते है
मगरुर
होती है जब भी शख्सियत
फकीर
अपनी फूंक से तोड जाते है
डॉ.अजीत
4 comments:
gajab
bahut behtareen.. shaandaar:)
aaj aapke rachna ka avlokan rashmi di ke najar me dekh kar achchha laga.. badhai:)
वाह बहुत खूब
सिर्फ इंटरनेट की दोस्ती कैलेंडर की तरह बदलती है ...यहाँ के लोग बहुत जल्दी एक दोस्त से बोर हो जाते है
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