Tuesday, July 5, 2016

इयत्ता

अपनी इयत्ता में सिमटा
हर शख्स
थोडा सा अजीब हो ही जाता है

अनुमानों से छलनी उसका सीना
प्रेम भी करता है बेहद झीना

बात केवल एक अवस्था की नही है
एकदिन आप भूल जातें है
अपनी चड्ढी बनियान का नम्बर
फिर अनफिट चीज़े पहनना
एक किस्म की मजबूरी भी होती है
मगर नही रहती किसी से कोई शिकायत

शिकायत का न होना एक किस्म की संधि है
जिसका उल्लेख किसी युद्ध के इतिहास में नही मिलेगा

दुनिया की कृत्रिमता छिप भी जाए
खुद पर सवाल खड़े करने वाले नही छिप पाते
किसी सुदूरवर्ती द्वीप पर भी
वो दराज़ में मुंह देकर खंगालते है पुराने कागज़
ताकि मिल सके उनकी रिहाई का खत

अजीब लोगो की बीच रहते है कितने अजीब लोग

इसी रिहाइश पर
कुछ लोग नक्शा लेकर खड़े होते है
वो चाहतें दुनिया से करना
इन अजीब लोगो को बेदखल
ताकि दुनिया में बची रहे एकरूपता

अपनी इयत्ता में सिमटे हुए शख्स
इतने मामूली होते है कि
आप उन्हें हंसते या रोते हुए नही पहचान सकते

उनकी हूक में विलुप्त हुई जातियों के ऋण दबे होते है
उनकी हंसी में क्लोन के सन्देह शामिल होते है
उनकी मुस्कान गैर बौद्धिक होती है
नही कह सकते आप उसे मासूम

सिमटता हुआ आदमी
दिखता है बेहद अरुचिपूर्ण
सबसे आसान होता है उसे खारिज़ करना
दरअसल,उसे खारिज़ करना ठीक वैसा है
जैसे धरती पर बैठकर कहना
यही है धरती का एकमात्र मध्यबिंदू
फिर आप व्यवस्थित करते रहे
कर्क रेखा अपने हिसाब से

अपनी इयत्ता में सिमटा हर शख्स खतरा है
सभ्य समाज के लिए
क्योंकि वो नही जानता विशुद्ध साइंटिफिक केलकुलेशन
वो होता लगभग अनपढ़
रिश्तों को उपयोग करने के कौशल में
वो जोड़ लेता दशमलव के बाद का भी शून्य
अपनत्व के भरम में

उसे खदेड़ना चाहिए देखते ही
डराना चाहिए पाषाणकालीन आवाज़ों से
अलबत्ता तो वो डरेगा नही अगर एक बार डर गया
फिर वो जोर जोर से गाएगा गर्व से भरे गीत

अपनी इयत्ता में सिमटे शख्स का डर
होता है बेहद विचित्र
वो डर जाता है एक आत्मीय हंसी से
एक निजी सवाल से
और जब वो डरता है
तब दिखता है ठीक उनके जैसा
जिनकी खुद से बिलकुल मुलाकातें नही

अपनी इयत्ता में सिमटे शख्स को
बस हम इसी तरह देखना चाहतें है
फिर हो जातें है हमे थोड़े बेफिक्र
सुला देते है अपने बच्चों को दिन में
और रात में लिखतें है न होने क्रांतियों के पाठ

जिन पढ़कर एक जवान पीढ़ी हो जाती है तुरन्त बूढ़ी।

© डॉ.अजित

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