Monday, December 11, 2017

कौशल

कवि की प्रार्थना
होती है निस्तेज
इसलिए
कवि देता है केवल श्राप
कविता कवि का श्राप है
जिसका भोग्याकाल होता है
सबके लिए अलग-अलग
कवि से वरदान की मत कीजिए कभी कामना
वो सौंप देगा अपनी कविता वरदान की शक्ल में
और आप नही कर पाएंगे यह तय
किस तरह से बरती जाए यह कविता
कवि से मत करना प्रेम
कवि से मत करना घृणा
कवि को देखना कभी प्रेम से
कभी घृणा से एक साथ
कवि ईश्वर का दूत नही है
वो मनुष्यता का भेदिया है
जो भेजता है रोज रपट
शत्रु मन को
अचानक आए आक्रमण
कवि और कविता का षड्यंत्र कहे जा सकते है
जिन्हें बाद में समझा गया खुद से प्रेम
कवि से कभी मत मिलना
कवि से मिले तो
हो जाएगा मुश्किल
खुद से मिलना
कविता से मिलना
मन के मौसम को छोड़कर
वो थाम लेगी हाथ
हर मुश्किल वक्त में
कविता को निकाल लेना कवि के भंवर से
बतौर मनुष्य यही होगा तुम्हारा बड़ा निजी कौशल.
@ डॉ. अजित

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर।

'एकलव्य' said...

बहुत ही सुन्दर व कोमल भाव रचना का

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

Ashish Awasthi said...

Gazab likha hai sir