Thursday, January 4, 2018

अच्छा

कितना अच्छा हो
जिसकी आए याद
आ जाए तभी उसका एक फोन

कितना अच्छा हो
जिससे नाराज़ हो
उसे कर दे माफ,उसकी एक माफी पर

कितना अच्छा हो
धूप और छाँव बैठे एक साथ
और सूरज हो जाए
थोड़ा बेफिक्र

कितना अच्छा हो
रोती हुई स्त्री
कांधे से लगकर हो जाए एकदम चुप

कितना अच्छा हो
बच्चा हंसते हुए पकड़े
रोज़ हमारे गाल

कितना अच्छा हो
कि अच्छा होने की कल्पना में
दो अजनबी पेश आए
एक दुसरे से दोस्त की तरह

चाहे जितना बुरा हो जीवन में
मगर इतना अच्छा भी होना चाहिए

ताकि
आदमी कह सके बेझिझक
प्यार मेरी जरूरत है
और मैं जरूरतमंद नही हूँ।

©डॉ. अजित