Sunday, November 4, 2018

प्रेम की स्मृतियाँ


जिससे प्रेम किया जाए
वो हम उम्र हो
यह जरूरी तो नही
ये किसी फिल्म या नाटक का
संवाद हो सकता है
वो उससे दस साल बड़ी थी
मगर वो उससे दस साल छोटा नही था
किसी की तार्किकता पता करने के लिए
किया जा सकता है
इस वाक्य का प्रयोग
मगर जीवन हो या प्रेम
वो संवाद या तर्क के भरोसे नही चलता
वो चलता है
उन बातों के भरोसे
जिनका कोई ठीक-ठीक
जवाब नही होता है हमारे पास.
**
बातों में मनोविज्ञान न हो
तो बचने लगते है लोग
हर कोई खुद को तलाशता है
बातों और मुलाकातों में
आदमी जब होता है गुमशुदा
उसे देख कर
कहा जा सकता है
गुमशुदगी एक निजी चीज है
जो दिखती जरुर सार्वजनिक है.
**
प्रेम मिलता रहा मुझसे
भेष बदल-बदल कर
हर बार मैंने जाना प्रेम को
प्रेम के खो जाने के बाद
इस मामलें में किसी काम नही आयी
मेरी स्मृतियाँ
दरअसल प्रेम की स्मृतियाँ
पीड़ाओं को याद रखने के लिए थी
हमेशा तत्पर
मनुष्य को समझना
मुझे कभी नही समझा पाया प्रेम
**
मेरे हाथों में
तुम्हारी रेखाओं की प्रतिलिपियाँ
चस्पा थी
मेरी रेखाएं जोर से देती थी मुझे आवाज
मगर तुम्हारे स्पर्श
आवाज़ को हमेशा रोक लेते थे
अपने इर्द-गिर्द
मेरे जीवन में आशाएं
तुम्हारी रेखाओं के फलादेश का परिणाम था  
तुम्हारे कारण
मैं भूल गया था अपना प्रारब्ध
इस  पर हंसती थी मेरी रेखाएं
और मैं समझता था
वक्त बदलने वाला है.
© डॉ. अजित