जिससे
प्रेम किया जाए
वो
हम उम्र हो
यह
जरूरी तो नही
ये
किसी फिल्म या नाटक का
संवाद
हो सकता है
वो
उससे दस साल बड़ी थी
मगर
वो उससे दस साल छोटा नही था
किसी
की तार्किकता पता करने के लिए
किया
जा सकता है
इस
वाक्य का प्रयोग
मगर
जीवन हो या प्रेम
वो
संवाद या तर्क के भरोसे नही चलता
वो
चलता है
उन
बातों के भरोसे
जिनका
कोई ठीक-ठीक
जवाब
नही होता है हमारे पास.
**
बातों
में मनोविज्ञान न हो
तो
बचने लगते है लोग
हर
कोई खुद को तलाशता है
बातों
और मुलाकातों में
आदमी
जब होता है गुमशुदा
उसे
देख कर
कहा
जा सकता है
गुमशुदगी
एक निजी चीज है
जो
दिखती जरुर सार्वजनिक है.
**
प्रेम
मिलता रहा मुझसे
भेष
बदल-बदल कर
हर
बार मैंने जाना प्रेम को
प्रेम
के खो जाने के बाद
इस
मामलें में किसी काम नही आयी
मेरी
स्मृतियाँ
दरअसल
प्रेम की स्मृतियाँ
पीड़ाओं
को याद रखने के लिए थी
हमेशा
तत्पर
मनुष्य
को समझना
मुझे
कभी नही समझा पाया प्रेम
**
मेरे
हाथों में
तुम्हारी
रेखाओं की प्रतिलिपियाँ
चस्पा
थी
मेरी
रेखाएं जोर से देती थी मुझे आवाज
मगर
तुम्हारे स्पर्श
आवाज़
को हमेशा रोक लेते थे
अपने
इर्द-गिर्द
मेरे
जीवन में आशाएं
तुम्हारी
रेखाओं के फलादेश का परिणाम था
तुम्हारे
कारण
मैं
भूल गया था अपना प्रारब्ध
इस
पर हंसती थी मेरी रेखाएं
और
मैं समझता था
वक्त
बदलने वाला है.
©
डॉ. अजित
1 comment:
वाह
Post a Comment