Thursday, March 7, 2019

मोक्ष

आज से कई बरस बाद
जब सब कुछ ढ़लान पर होगा
और मृत्यु की चिंता सहित प्रतीक्षा
अवचेतन का सबसे बड़ा सच होगा

तब मैं पूछूँगा उन दिनों के बारे में
जब सुदर्शन थी काया
और शब्दों की थी अपनी माया
सपने जब डेढ़ रात चलते थे
और दिन हमारी शर्तों पर ढ़लते थें

तब एक स्त्री ही बताएगी
यथार्थ की सच्ची परिभाषा
उसी के भरोसे छोड़ सकूंगा
मैं अधिकार की आशा

उसकी मदद के भरोसे होगी
मेरी मुक्ति
देह और आत्मा के प्रश्नों से
घटित होगी तब सच्ची विरक्ति

एक स्त्री के प्यार के भरोसे ही
मैं जा सकूंगा यहां से होकर निर्द्वंद
क्योंकि
स्त्री का प्यार यह भरोसा दिलाएगा
मुझे बार-बार

उसके लिए लौटना होगा मुझे
 हर बार।

©डॉ. अजित

5 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन टीम की और रश्मि प्रभा जी की ओर से आप सब को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |


ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/03/2019 की बुलेटिन, " आरम्भ मुझसे,समापन मुझमें “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

ज्योति सिंह said...

अति उत्तम

Sadhana Vaid said...

वाह बहुत ही सुन्दर रचना ! एक स्त्री लो सही अर्थों में चित्रित करती अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति !

Onkar said...

बहुत सुन्दर