Saturday, February 6, 2021

कवि दोस्त

 उन्होंने सदा मुझे माना

एक प्रतिभाशाली कवि 


वे पेश आते रहे

बेहद विनम्रता से


खुद उत्कृष्ट कवि/पाठक होने के बावजूद

हमेशा संकोच के साथ बताते 

अपनी कविता के बारे में


बल्कि बताते भी नहीं थे

मैं खुद मांगता उनकी कोई कविता 

तो वे बदले में अपनी कविता भूल 

जिक्र करने लगती मेरी किसी पुरानी कविता का


जब-जब कहता मैं

कि अब कवि नहीं रहा हूँ मैं 

तो वे केवल फैला देते एक 

इमोजी वाली मुस्कान


उन्हें इस कदर भरोसा था 

मेरे कवित्त्व पर कि 

मेरे द्वारा प्रंशसित कविता को पढ़कर

वे याद दिला देते मेरी ही कोई कविता

ताकि मैं खुद का मूल्य कमतर न मानू 


उन्हें लगता था खराब

मुझे शब्दहीन और भाव निर्धन देखकर

मगर कभी कहते नहीं थे ये बात


वे प्रार्थनारत थे 

वे उम्मीदजदां थे

कि एकदिन मैं लौट आऊंगा 

अपने फ्लेवर,कलेवर और तेवर में 


उन्हें देख मुझे 

कोई कविता न सूझती थी 

निरुपाय होकर 

बस मैं देखता था उनके हाथ


जिन्हें थामे हुए 

मैं लांघ रहा था 

एकांत का वो गहरा निर्वासन 

जहाँ कविता 

अपना रास्ता भूल गई थी।


©डॉ. अजित

6 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

सधु चन्द्र said...

उकृष्ट।

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 08 फ़रवरी 2021 को 'पश्चिम के दिन-वार' (चर्चा अंक- 3971) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

Onkar said...

बहुत बढ़िया

अनीता सैनी said...

बहुत सुंदर सर।

Aparna Bajpai said...

क्या कहूँ, यह कविता कितनी ही सहजता समेटे है...
आज दिल खुश हो गया यहां आकर
सादर