उसने मेरा हाथ देखकर कहा था
ये एक मर्डरर का हाथ है
क्या तुम कभी कत्ल कर सकते हो किसी का?
मैंने कहा, शायद हां !
मुझे नहीं लगता तुम्हारे अंदर इतना साहस है, उसने कहा
साहस कई बार क्षणिक रूप से घटित हो जाता है, मैंने कहा
मैंने नहीं चाहती वह क्षण कभी आए, उसने कहा
तो क्या एक कायर व्यक्ति प्रिय रहेगा तुम्हें?
हाँ !मैं पराजित की बजाए कायर को पसंद करती हूँ.
उसने ये कहा और मेरा हाथ पलट कर छोड़ दिया.
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क्या हम एक दूसरे की गंध पहचानते हैं?
उसने पूछा एक दिन
मैंने कहा, गंध
हमें पहचानती हैं
हम गंध को नहीं
उसने मेरी पलके सूंघते हुए कहा
तुम्हारी इस बात से सहमति है मेरी.
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तुम्हें ईश्वर के दंड का भय नहीं लगता
उसने पूछा
ईश्वर के दंड का भय उन्हें लगता है
जिनके अंदर छल छिपा होता है
मैंने जवाब दिया
तुम्हारे अंदर क्या छिपा है? उसने पूछा
मैंने कहा
एक भरोसा इस बात का
कि तुम रहते छल की जरूरत नहीं पड़ेगी मुझे.
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मैंने कहा एकदिन
सही-गलत उचित-अनुचित की
सबकी अपनी परिभाषाएं होती हैं
उसने मेरे कथन को लगभग अनसुना करते हुए
विषयांतर करते हुए कहा
कुछ चीजों की परिभाषाएं और वजहें नहीं होती
बस वे क्या तो होती है
या नहीं होती हैं
जैसे कि तुम.
© डॉ. अजित
3 comments:
बहुत दिनों के बाद। सुन्दर रचना।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-07-2021को चर्चा – 4,133 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुन्दर
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