Monday, August 5, 2024

किताबें

 

घर के अलग-अलग हिस्सों में

बेतरतीब पड़ी मिलेंगी किताबें

कुछ पढ़ी, कुछ आधी पढ़ी

कुछ बिना पढ़ी

 

तो कुछ ढूँढने पर भी न मिलने वाली जगह

दुबकी भी हो सकती हैं

 

मैंने किताबें खरीदी

यह कहना कभी रुचिकर न लगा मुझे

इस घोषणा से आती है बाजार की गंध

किताबें आई मुझ तक चलकर खुद

देखकर मेरा आधा एकांत और आधी बेहोशी

 

कुछ किताबें ऐसी भी थी

जो कभी खोलकर नहीं देखी मैंने

मगर उन्हें कोई मांगे तो मैं बोल दूंगा साफ झूठ

 

किताबें मुझे सच बोलना सिखाने आई थी

मगर मेरे द्वारा किताब को लेकर बोले गए झूठ की

बन सकती है खुद एक किताब

 

आज भी कोई किताब कर रहा हो दान

तो मैं सबसे पहले खड़ा हो जाऊंगा कतार में

किसी निर्धन विप्र की तरह

जिसके पास किताबें हैं वो राजा से कम नहीं मेरे लिए

 

मैं बेहद कम पढ़ता हूँ

मगर किताबें पास होती हैं

तो बनी रहती है एक आश्वस्ति

 

कि मेरे पास बचा है बहुत कुछ पढ़ने के लिए

 

किताबों को यूं बेतरतीब पड़ा देख

कोफ़्त होती हैं उन्हें

जो समझते हैं कि केवल खरीदता हूँ

पढ़ता नहीं हूँ किताब

 

वे भूल जाते हैं एक बात कि

किताब पढ़ने का नहीं होता कोई नियोजन

वे बस बनी रहे साथ

तो आसानी से याद होते जाते हैं

जिंदगी के सबसे कठिन पाठ।

 

© डॉ. अजित