Thursday, August 4, 2011

एनसीआर

अपने कामयाब

दोस्तों से मिलने

के लिए एनसीआर

से बढिया जगह कुछ और

हो ही नही सकती

अपने वक्त के कुछ बेहद सफल समझे गए

दोस्तों से मिलने के लिए

एनसीआर में एक जगह

की तलाश जारी है

रिंग रोड की तरह

खुद पर घुमकर आ जाता हूँ

और पाता हूँ कि

अपने-पराये रिश्तों के समकोणों

के बीच का सफर

कितना जोखिम भरा हो सकता है

लेकिन मिलना भी जरुरी है

आग्रह है कि दिल्ली से जब भी

गुजरो कम से कम

एक मिस्स कॉल ही कर दिया करों

अपने करीबी दोस्तों को मिस्स

करते हुए ये ख्याल आता है

कि एनसीआर की हवा पानी में

ऐसा क्या है कि

जो आदमी को बदलने की जिद पर

उतर आती है

प्रेक्टिकल होने का रोज सबक सिखाती है

खामोशी खुद ब खुद गुनगुनाती है

तभी तो न जाने क्यूँ

अपने करीबी दोस्तों से

एनसीआर मे मिलनें

की ख्वाहिश

एक हफ्ता और खिसक जाती है....!

डॉ.अजीत

3 comments:

UMMAID SINGH GURJAR said...

भाई साहब दोस्तों को याद कर रहे हो, या एक हफ्ते की गोली दे रहे हो.

सुशील छौक्कर said...

एनसीआर की हवा पानी में ऐसा क्या है कि
जो आदमी को बदलने की जिद पर उतर आती है प्रेक्टिकल होने का रोज सबक सिखाती है

नब्ज पर हाथ रख दिया डाक्टर साहब आपने। वैसे दिल्ली में शुद्ध दिल्ली के कितने लोग है जो है शायद अल्पसख्यंक हो गए है और जो है वे अपने को दिल्ली का कहां कहते हैं, उनके दिल तो अपने राज्य से जुड़े हैं और वो कहते भी है कि वो यहां दिल मिलना थोडे ही आए है हम तो कमाने आए है और जब कमाई की बात आती है तो हाथ मिलते है दिल नहीं। और इसी को प्रेक्टिकल होना कहते है। और जब गांव के आधे आदमी प्रेक्टिकल हो जाए तो बाकी भी पीछे पीछे हो लेते है। खैर इसी दिल्ली के एक कोने में पागल लोग भी रहते है बस उनकी संख्या कम है और जिन्हें ढूढना पड़ता है....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यहाँ सब भाग दौड कि ज़िंदगी से जुड़े हैं .. मन के भावों को बखूबी अभिव्यक्त किया है