जख्मों को इस तरह सीना चाहता हूँ
बस अपनी शर्तों पर जीना चाहता हूँ
आप जिद कर ही बैठे है सुनने की
तो फिर पहले थोडी पीना चाहता हूँ
वो वक्त भी अजीब था जब शौक था
आजकल लोगो की फरमाईश पर गाता हूँ
दर्द जिसके साथ बांटे वो बेकद्र निकला
अब अक्सर हँसकर जख्म छुपाता हूँ
अपनी फकीरी का ये अन्दाज़ भी अजीब है
जो दर बेआस है उस पर अलख जगाता हूँ
मुझसा कोई न मिला होगा अब से पहले
चलिए ये फैसला आप पर ही छोड जाता हूँ
डॉ.अजीत
6 comments:
आप जिद कर ही बैठे है सुनने की
तो फिर पहले थोडी पीना चाहता हूँ
bahut hi khub....
jwab par gour farmaiyega......
मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे
मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे।
बहुत खूब सर!
सादर
अच्छे अशआर....
सादर...
शानदार... आप-से कम ही मिले हैं...
बहुत खूब भाई साहब की आप ही जिद्द कर बैठे है...
waah ajeet bhai aap hi zid kar baithe hai
Post a Comment