Tuesday, November 29, 2011

अदा

जख्मों को इस तरह सीना चाहता हूँ

बस अपनी शर्तों पर जीना चाहता हूँ


आप जिद कर ही बैठे है सुनने की

तो फिर पहले थोडी पीना चाहता हूँ


वो वक्त भी अजीब था जब शौक था

आजकल लोगो की फरमाईश पर गाता हूँ


दर्द जिसके साथ बांटे वो बेकद्र निकला

अब अक्सर हँसकर जख्म छुपाता हूँ


अपनी फकीरी का ये अन्दाज़ भी अजीब है

जो दर बेआस है उस पर अलख जगाता हूँ


मुझसा कोई न मिला होगा अब से पहले

चलिए ये फैसला आप पर ही छोड जाता हूँ


डॉ.अजीत

6 comments:

UMMAID SINGH GURJAR said...

आप जिद कर ही बैठे है सुनने की
तो फिर पहले थोडी पीना चाहता हूँ

bahut hi khub....
jwab par gour farmaiyega......


मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे
मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे।

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत खूब सर!

सादर

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अच्छे अशआर....
सादर...

Neeraj Kumar said...

शानदार... आप-से कम ही मिले हैं...

Anonymous said...

बहुत खूब भाई साहब की आप ही जिद्द कर बैठे है...

Anonymous said...

waah ajeet bhai aap hi zid kar baithe hai