तुमसे
मिलना
कविता
की तरफ लौटना है
तुमसे
बिछ्डने का डर
कोई
उदास गजल कहने जैसा है
कभी
तुम कठिन गद्य की भांति नीरस हो जाती हो
कभी
शेर की तरह तीक्ष्ण
तो
कभी तुम्हारी बातों में दोहों,मुहावरों,उक्तियों की खुशबू आती है
तुम्हारे
व्याकरण को समझने के लिए
मै
दिन मे कई बार संधि विच्छेद होता हूँ
अंत
में
तुम्हारी
लिपि को समझने का अभ्यास करते करते
सो
जाता हूँ
उठते
ही जी उदास हो जाता है
तुमको
भूलने ही वाला होता हूँ कि
तुम्हारे
निर्वचन याद आ जाते है
जिन्दगी
की मुश्किल किताब सा हो गया है
तुम्हे
बांचना...
प्रेम
के शब्दकोश भी असमर्थ है
तुम्हारी
व्याख्या करने में
मेरे
जीवन की मुश्किल किताब
तुम्हे
खत्म करके मै ज्ञान नही बांटना चाहता
बल्कि
मुडे पन्नों
और
शब्दों के चक्रव्यूह में फंसकर
दम
तोड देना चाहता हूँ
क्योंकि
गर्भ ज्ञान के लिहाज़ से
मै
तो अभिमन्यू से भी बडा अज्ञानी हूँ।
डॉ.अजीत
4 comments:
Wow
काफी अच्छी लगी भाईसाहब जी !
Monu CheChi
waah!!! sundar!!
गर्भ ज्ञान के लिहाज़ से मै तो अभिमन्यू से भी बडा अज्ञानी हूँ ...
बहुत ही शानदार प्रस्तुति
सारगर्भित डॉ साहब ...
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