धरती की पीठ पर लिखा था प्रेम
नदियां छिपा रही थे प्रेम
झरनें मिटा रहें थे प्रेम
हवा उड़ा रही थी प्रेम
समन्दर डूबा रहे थे प्रेम
तमान कड़वी बातों
तमाम असहमतियों के बीच
इस ग्रह पर
बस हम तुम बचा रहे थे प्रेम
धरती से पूछा जब आकाश ने
किस तरह मिलनें आओगी तुम
उसनें हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा
इनकी तरह
फिर अचानक बारिश हो गई
पता नही पानी की बूंदे थी या
आसमान के आंसू
उसके बाद
थोड़ा आसान हो गया था
हमारे लिए प्रेम को बचाना।
© डॉ.अजित
नदियां छिपा रही थे प्रेम
झरनें मिटा रहें थे प्रेम
हवा उड़ा रही थी प्रेम
समन्दर डूबा रहे थे प्रेम
तमान कड़वी बातों
तमाम असहमतियों के बीच
इस ग्रह पर
बस हम तुम बचा रहे थे प्रेम
धरती से पूछा जब आकाश ने
किस तरह मिलनें आओगी तुम
उसनें हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा
इनकी तरह
फिर अचानक बारिश हो गई
पता नही पानी की बूंदे थी या
आसमान के आंसू
उसके बाद
थोड़ा आसान हो गया था
हमारे लिए प्रेम को बचाना।
© डॉ.अजित
1 comment:
मनोभावों को क्या खूब उकेरा है। प्रेम के बिरह में बारिश भी आंसूओं सी नज़र आती है।
सुंदर चित्रण।
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