Sunday, June 14, 2015

प्रेम का बचना

धरती की पीठ पर लिखा था प्रेम
नदियां छिपा रही थे प्रेम
झरनें मिटा रहें थे प्रेम
हवा उड़ा रही थी प्रेम
समन्दर डूबा रहे थे प्रेम
तमान कड़वी बातों
तमाम असहमतियों के बीच
इस ग्रह पर
बस हम तुम बचा रहे थे प्रेम
धरती से पूछा जब आकाश ने
किस तरह मिलनें आओगी तुम
उसनें हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा
इनकी तरह
फिर अचानक बारिश हो गई
पता नही पानी की बूंदे थी या
आसमान के आंसू
उसके बाद
थोड़ा आसान हो गया था
हमारे लिए प्रेम को बचाना।

© डॉ.अजित

1 comment:

Ankur Jain said...

मनोभावों को क्या खूब उकेरा है। प्रेम के बिरह में बारिश भी आंसूओं सी नज़र आती है।
सुंदर चित्रण।