काश स्मृतियों के पाँव नही
कान होते
उनको सुना पाता मैं
तुम्हारे साथ होने की खनक
वो यूं दबें पाँव न आती फिर
उठा लाता उन्हें गोद में
उनके कान को चूमता हुआ
जिस तरह आती है
बीतें पल की स्मृतियाँ
मुझे नही पसन्द
उनका इस तरह आना
चाहता हूँ वो जब भी आएं
कुछ इस तरह आएं
जैसे पानी पर आती है काई
उन पर फिसलकर
चोट नही लगें
बस लड़खड़ाऊ
और गिरनें से पहलें
थाम लो तुम मेरा हाथ।
© डॉ.अजित
कान होते
उनको सुना पाता मैं
तुम्हारे साथ होने की खनक
वो यूं दबें पाँव न आती फिर
उठा लाता उन्हें गोद में
उनके कान को चूमता हुआ
जिस तरह आती है
बीतें पल की स्मृतियाँ
मुझे नही पसन्द
उनका इस तरह आना
चाहता हूँ वो जब भी आएं
कुछ इस तरह आएं
जैसे पानी पर आती है काई
उन पर फिसलकर
चोट नही लगें
बस लड़खड़ाऊ
और गिरनें से पहलें
थाम लो तुम मेरा हाथ।
© डॉ.अजित
1 comment:
सुन्दर रचना
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