Saturday, February 18, 2017

आख़िरी कविता

मेरे शब्दकोश से क्षुब्ध होकर
अरुचि का शिकार हो जाएंगे
एकदिन लोग

पुनरुक्ति को देख वो समझ लेंगे
इसे मेरा स्थाई दोष
नही रहेगी मेरी बात में कोई नूतनता
हर दूसरे दिन खुद को खारिज़ करता जाऊँगा मैं

शब्दों से छनकर बह जाएगी सारी सम्वेदना
शिल्प के खण्डहर में अकेले होंगे अनुभव
तब कहने के लिए नही बचेगा
मेरे पास कुछ भी शेष
मौन रूपांतरित हो जाएगा निर्वात में

इतनी नीरवता में मेरा चेहरा देखकर
जिन्हें याद आएंगी कुछ मेरी पुरानी कविताएं
उनका प्रेम देख शायद रो पडूंगा मैं

कवि के तौर पर
यह मेरी आख़िरी अशाब्दिक कविता होगी।

©डॉ.अजित

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

आखिरी ही से शुरुआत होती है ।

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "एयरमेल हुआ १०६ साल का “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Onkar said...

बहुत बढ़िया